प्रवचन सारांश पर प्रस्तावना और टिप्पणी

प्रस्तावना

"मुक्ती चर्चा से कभी नहीं, मात्र केवल अभ्यास के द्वारा प्राप्त की जा सकती है," एस एन गोयंकाजी ने कहा है. विपश्यना ध्यान का शिविर मुक्ति की ओर ठोस कदम उठाने के लिए एक अवसर है. इस तरह के एक शिविर में भाग लेनेसे सहभागी यह भी सीखता है, की जो मन के तनाव और पूर्वाग्रहों जो दैनिक जीवन के प्रवाह को परेशानी कर रहे है उन्हे कैसे दूर करे. ऐसा करने से कोइएक कैसे हर पल शांती से,उत्पादकता के साथ, सुख से जिये यह समझने लगता है. उसी समय में कोइएक उच्चतम लक्ष्य के लिए जिसका मानवजाती कामना करती हैं, उसके ओर प्रगति शुरु करता हैः मन की पवित्रता, सभी दुःखोसे मुक्ति, पूर्ण ज्ञान

सिर्फ इसके बारेमे सोचनेसे या इसकी इच्छा करनेसे इसमेसे कुछ भी नही प्राप्त कर सकते. किसिएक को इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए कदम उठाने चाहिए. इस कारण से, विपश्यना शिविर मे वास्तविक अभ्यास पर हमेशा जोर दिया जाता है. कोई भी दार्शनिक बहस को, कोई सैद्धांतिक तर्क को, किसिके अनुभव से असंबंधित सवाल पुछनेको अनुमती नही दी जाती है.जहां तक संभव हो, साधक को अपने भीतर के उनके सवालों के जवाब खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. आचार्य जो भी मार्गदर्शन अभ्यास के लिये आवश्यक है, उसका प्रबंध करता है, लेकिन यह दिशा-निर्देशों का अनुपालन करना प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर होता है: किसिएक को अपने मुक्ति के लिये खुद को प्रयास करना है,अपनी लड़ाई स्वयं लड़ना है.

इस पर जोर देते हुए, अब भी अभ्यास के लिए कुछ स्पष्टीकरण प्रदान करना आवश्यक है. इसलिए एक शिविर मे हर शाम को गोयन्काजी दिन के अनुभवों को यथार्थ दर्शन के संदभमे, तथा तकनीक के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट करने के लिए, एक "धम्म प्रवचन" देते है. ये प्रवचन, बौद्धिक या भावनात्मक मनोरंजन के इरादे से नहीं है, ऐसी चेतावनी उन्होने दी है. साधक को क्या करना है और क्यों करना है यह समझनेके लिये मदत करना यह इनका उद्देश है, ताकि वे उचित तरीके से काम करेंगे और उचित परिणाम प्राप्त करेंगे.

यह इन प्रवचनो को संक्षिप्त रूप में यहाँ प्रस्तुत कर रहे है.

यह ग्यारह प्रवचन बुद्ध की शिक्षा का एक व्यापक सिंहावलोकन की पूर्ति करते हैं. तथापि, इस विषय का दृष्टिकोण विद्वत्ता या विश्लेषणात्मक नहीं है. इसके बजाय शिक्षाको एक ध्यानी को उघारनेके लिये प्रस्तुत किया है: एक गतिशील, सुसंगत पूरे के रूप में. इससे सभी विभिन्न पहलु एक अंतर्निहित एकता प्रकट करते हैः ध्यान का अनुभव है. यह अनुभव भीतर का अग्नी है जो धम्म के रत्न को सच्चे जीवन और प्रतिभा देता है. इस अनुभव के बिना कोइएक प्रवचन में , या वास्तव में बुद्ध के शिक्षा के बारे में क्या कहा गया इसका पूरा महत्व आकलन नही कर सकेगा. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की शिक्षा की बौद्धिक प्रशंसा के लिए कोई जगह नहीं है.बौद्धिक समझ, ध्यान के अभ्यास के पूरक होने के रुप मे मूल्यवान है, भले ही ध्यान करना अपने आप एक प्रक्रिया है जो बुद्धि की सीमाओं के परे चली जाती है. इसी कारण से संक्षिप्त में प्रत्येक प्रवचन के आवश्यक मुद्दोसे यह सारांश संक्षिप्त में तैयार किया गया है. वे उन लोगों के लिये जो स.ना,गोयन्का द्वारा पढ़ाये गये विपश्यना का अभ्यास कर रहे है, उन्हे प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए प्रमुख इरादे से किये हैं. जो इन्हें पढेंगे ऐसे दुसरों लोगोंसे यह आशा की जाती है की वे एक विपश्यना शिविर और जो यहाँ वर्णन किये गये अनुभव करने में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित होंगे.

यह सारांश विपश्यना के दस दिवसीय शिविर के बदले अपने आप सीखने के लिए मैन्युअल के रूप में नहीं माना जाना चाहिए. ध्यान एक गंभीर विषय,विशेष रूप से विपश्यना तकनिक, जो मन की गहराई के साथ संबंधित है. इसे हल्के से या सहजतासे नहीं लेना चाहिए. विपश्यना सिखने के लिए उचित तरीका यह है, जहां साधक के लिये उचित वातावरण और प्रशिक्षित मार्गदर्शक हो वहॉ पे औपचारिक शिविर मे शामिल हो. अगर कोइ इस चेतावनी की उपेक्षा करता है और खुद ही इसके बारे में पढ़ने से विद्या/तकनीक सिखाने की कोशिश करता है, तब वह अपने खुद के जोखिम पर यह करेगा. सौभाग्य से स.ना.गोयन्काजी द्वारा सिखाए गये विपश्यना ध्यान के शिविर विश्वभर मे अनेक भागोमे नियमित आयोजित किये जाते है. यह अनुसूचियों यहासे  ऑनलाइन उपलब्ध कर सकते हैं.

सारांश शेलबर्ने फॉल्स, मैसाचुसेट्स, संयुक्त राज्य अमरीका में अगस्त 1983 के दौरान विपश्यना ध्यान केंद्र में श्री.गोयन्काजी द्वारा दिए गए प्रवचनों पर प्रमुखता से आधारित हैं. अपवाद दस दिन का सारांश, जो अगस्त 1984 में उसी केंद्र में दिए गए प्रवचन पर आधारित है.

यद्यपि श्री.गोयन्काजी ने इस सामग्री को देखा है और प्रकाशन के लिए इसे मंजूरी दे दी है, उनको इसे बारीकी से जाँच करने को समय नहीं मिला. परिणामस्वरुप, पाठक को कुछ त्रुटियों और विसंगतिया मिल सकती है.ये जिम्मेदारी शिक्षक की नही, और न ही शिक्षा की हैं, लेकिन मेरी. आलोचना का बहुत स्वागत है जो पाठ में से ऐसी खामियां दूर करने के लिए मदद कर सकती है.

इस काम से धम्म के अभ्यास मे बहुतों को मदद मिले.

सबका मंगल हो.

विलियम हर्ट


प्रवचन सारांश के पाठ पर टिप्पणी

बुद्ध और उनके शिष्यों के विचार, जो गोयन्काजीने उद्धृत किये है वे अनुशासन के संग्रह (विनय-पिटक) और पाली व्यवस्था के (सुत्त-पिटक) के प्रवचन से लिये गये है. (बहोतसे उध्दरण दोनों संग्रह में दिखाई देते हैं, हालांकि ऐसे घटनामे में केवल सुत्त संदर्भ यहां दिए गए हैं.) यहा अधिकृत पाली साहित्य के बादमेसे से कुछ उदाहरण दिये हैं.उनके प्रवचनो में, गोयंकाजी ने इन अवतरणोंका पाली शब्दोंका शब्दशः भाषांतर करनेके बजाय भावानुवाद किया है. हर अवतरणोंका सार साधारण भाषा में देनका उद्देश यही है की विपश्यना साधनाके अभ्यास पर इनके संबंधो पर जोर दे सके.

जहां एक पाली अवतरण सारांश में प्रकट होता है, वहॉ जो भाष्य दिया जाता है, वह गोएंकाजी ने दिये हुए प्रवचन है जिस पर सारांश आधारित है. इन दस्तावेजों में,पाली अनुभाग के अंग्रेजी अनुवाद में, दिये हुए अवतरणोंकी अधिक स्पष्ट व्याख्या देकर, एक साधक के दृष्टिकोण पर बल देनेका एक प्रयत्न किया है. दुर्भाग्य से, इस सिमीत फ़ॉन्ट माध्यम से पाली शब्दोंके आवश्यक उद्धृत चिन्ह जो यहॉपे रोमन लिपीमे दिये है वह शामिल करना असंभव है.

सारांश के अवतरण में, पाली शब्द न्यूनतम आवश्यक उपयोग के लिए रखे गये है. जहां ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया हैं, अनुरुपते के लिये उनके बहुवचन पाली में दिये गये है.