विपश्यना
सत्यनारायण गोयन्काजी द्वारा सिखायी गयी
साधना
सयाजी ऊ बा खिन की परंपरा मैं
आचार्योंकी की शृंखला
साया थेट्ग्यि
1873-1945
सयाजी यू बा खिन के शिक्षक के निम्न खाते आंशिक रूप से म्यानमारके धम्मकरिया उ ह्टे ह्लैन्ग की किताब "साया थेट्ग्यि" के अनुवाद पर आधारित है.
साया थेजी (उच्चारण "सा या टा जी" बर्मा भाषामे)का जन्म आठ मील रंगून के दक्षिण रंगून नदी की विपरीत दिशा में एक खेती गांव प्याव्ब्वेग्यि में 27 जून को, 1873 को हुआ था.उनका नाम मौन्ग पो थेट रखा गया था.उसकी माँ को चार बच्चोंके याने उसे, उसके दो भाइयों और एक बहन की देखभाल के लिए अकेली छोड़कर उनके पिता की मृत्यु हो गई, जब पो थेट 10 साल के थे.
वह गांव में सब्जी पकौड़े बेचकर परिवार का समर्थन करती थी. छोटा लड़का बचे हुए पकौड़े बेचने चारों ओर जाता था, लेकिन अक्सर किसको भी न बिक कर घर आता था, क्योंकि आवाज देकर अपना सामान की बिक्री करनेमे उनको शर्म आ रही थी. इसके वजहसे उनकी मां ने दो बच्चोको भेजना चालू कियाः पो थेट को उसके सिरपर छोटी प्लेट मे माल लेकर, और उसकी छोटी बहन को उनके माल का एलान करनेके लिये.
क्योंकि उनको परिवार को सहायता करने की जरूरत थी, उनका औपचारिक शिक्षा केवल न्यूनतम-सिर्फ करीब करीब छह साल थी. उनके माता-पिता के पास कोइ भी जमीन या चावल की खेती नहीं थी,और इसलिए चावल के डंठल,जो दूसरों के खेतों में कटाई के बाद पडे रहते थे इनको इकट्ठा करके इस्तेमाल करते थे. खेतों से घर के रास्ते पर एक दिन, पो थेट ने सूखते हुए एक तालाब मे कुछ छोटी मछली पायी. उन्हें पकड़ लिया और उन्हें घर ले आए, ताकि वह उन्हें गांव के तालाब में छोड सके. उनकी मांने मछली को देखा और उन्हें पकड़ने के लिए उसके बेटे को दंड देनेवालीही थी , लेकिन जब उन्होने उसे अपने इरादे के बारे में बताया,तो दंड के बजाय उन्होने कहा, "Sādhu, sādhu! (अच्छा किया, अच्छा किया).” वह एक दयालु औरत थी जो कभी भी परेशान या कभी डांटती नही थी, लेकिन किसी भी akusala (अनैतिक) कृत्य को बर्दाश्त नहीं करती थी.
जब वह 14 साल के थे, मौन्ग पो थेट ने अपनी माँ को अपनी दैनिक मजदूरी देने के लिये एक बैलगाड़ी चालक होकर चावल परिवहन के रूप में काम शुरू कर दिया.उस समय वह इतना छोटा था की बैलगाडी मे चढने और उतरनेके लिये वह अपने साथ एक बॉक्स लेकर जाते थे.
पो थेट की अगली नौकरी थी एक नाव खेनेवाली की.प्याव्ब्वेग्यि का गांव एक समतल खेती थी,जो कई साहायक नदियों से ,जो रंगून नदी की तरफ बहती थी उससे तयार हुइ थी. जब चावल के खेतों में पानी भर जाता है, नौ यात्रा एक समस्या होती है, और यात्रा का आम साधन इन लंबे, सपाट तली नावों के द्वारा होता है.
एक स्थानीय चावल मिल के मालिक ने चावल का भार ले जाने वाले छोटे लड़के को लगन से काम करते हुए देखा, और प्रति माह छह रुपये की मजदूरी पर चक्की में चावल के हिसाब के लिये रखनेका निर्णय लिया. पो थेट चक्की में खुद रहते थे और मटर की दाल का पकौड़े और चावल का साधारण भोजन खाते थे.
सबसे पहले उन्होंने भारतीय चौकीदार और अन्य मजदूरों से चावल खरीदा. उन्होंने उसे कहा कि वह खुद मिलका पिसा हुआ चावल का कचरा जो सुअर और चिकन फ़ीड के लिए रखा गया था उसे साफ करने मे मदद कर सकते है. पो थेट ने इनकार कर दिया, यह कहकर कि वह मिल मालिक के ज्ञान के बिना चावल लेना नहीं चाहते थे. मालिक को इसका पता चला, और उसने अनुमति दे दी.इससे यह हुआ, मौन्ग पो थेट को लंबे समय के लिए चावलका मलबा खाना नही पडा. जल्द ही नाव और गाड़ी मालिकोंने उसे चावल देना शुरु किया, क्योंकि वह एक उपयोगी और तत्पर कर्मचारी था. फिर भी, पो थेट ने, कचरा इकट्ठा करना चालू रखा, वह भी गरीब ग्रामीणों को चावल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, उनको देने के लिये.
एक वर्ष के बाद उनके वेतन में 10 रुपये की वृद्धि हुई, और दो साल बाद 15 रुपये. मिल मालिकने उसे पैसे देकर अच्छी गुणवत्तावाले चावल खरीदने की पेशकश की, और उसे प्रति माह 100 बास्केट मुक्तमे चक्कीसे पिसने की अनुमति दी.उनके मालिक ने वेतन मे 25 रुपये तक की वृद्धि की,जो उसे और उसकी मां को काफी पर्याप्त था.
मौन्ग पो थेट जब करीब 16 साल के थे, उन्होने मा ह्म्यिनके साथ प्रथाके अनुसार शादी कर ली.उनकी पत्नी एक समृद्ध ज़मींदार और चावल व्यापारी की तीन बेटियों में सबसे छोटी थी. दंपति के दो बच्चे थे, एक बेटी और एक बेटा. बर्मी रीति अनुसार,वे मा ह्म्यिन के माता-पिता और बहनों के साथ एक संयुक्त परिवार में रहते थे. मा यिन, छोटी बहन, एकेले बनी रही और एक सफल लघु व्यवसाय में कामयाब रही. वह बाद में उ पो थेटको अभ्यास और ध्यान को पढ़ानेमे मदद की कारण बन गयी.
बचपनमें, यू थेट को एक नौसिखिए भिक्षु, जो बर्मा में एक महत्वपूर्ण और आम बात है, नियुक्त होनेकी संधी नही मिली.यह केवल जब उनका भतीजा मौन्ग न्युन्ट उम्र के 12 साल में एक नौसिखिया भिक्खू हो गया, तब यू थेट खुद नौसिखिया भिक्खू हो गये. बाद में, एक समय के लिए, वह भी एक bhikkhu (भिक्षु) के रूप में नियुक्त हुए.
जब वह लगभग 23 सालके थे, तब उन्होने एक धम्मकी दीक्षा पाये हुए आचार्य साया न्युन्ट से आनापान(Anapana)सीखा और सात साल के लिए ध्यानका अभ्यास जारी रखा.
यू थेट और उनकी पत्नी के कई मित्र और रिश्तेदार आसपास के गांवमे रहते थे. कई चाचा, चाची, भतीजे, भतीजियों, चचेरे भाई और सास-ससुर के साथ,उन्होने परिवार और दोस्तों के सद्भाव में संतोष का एक सुखद जीवन बिताया.
इस देहाती शांति और खुशी बिखर गयी थी जब 1903 मे छूतकी महामारीने कई गांवोंमे आघात किया. कई देहातोकी मृत्यु हो गई,कोई कुछ दिनों के भीतरही. ऐसा कहा जाता है की यू थेट के बेटे और युवा किशोर बेटी की मृत्यु उसकी बाहों में हो गई .उनके देवर,को काये, और उसकी पत्नी भी रोगकी शिकार हुई, साथ ही यू थेट की भतीजी जो उनकी बेटी की बचपन की दोस्त थी.
इस आपदाने यू थेटको गहरा प्रभावित किया, और उनको कहीं भी आश्रय नहीं मिला. इस सख्त दुख से बाहर जानेका एक रास्ता खोजने के लिए,उन्होने अपनी पत्नी और भाभी, मा यिन, और अन्य रिश्तेदारों से"अमरत्व" की तलाशके लिये गांव छोड़ने की अनुमति मांगी.
यू थेटने एक समर्पित साथी और अनुयायी यू न्यो को अपने साथ लेकर एक उत्कट खोजके लिये पहाड़ विश्रांती और वन विहारोंका दौरा, विभिन्न शिक्षक, जैसे भी हो, भिक्षु तथा सधारण हो, उनके साथ अध्ययन के लिये,पूरी बर्मामे घुमे.अंत में वह आदरणीय लेडी सयाडॉ के साथ अभ्यास करने के लिए,उनके पहले आचार्य, साया न्युन्ट के सुझाव के अनुसार उत्तर मोन्य्वामे गये.
आध्यात्मिक खोज के इन वर्षों के दौरान, यू थेट की पत्नी और भाभी प्याव्ब्वेग्यि में रहे और चावल के खेतों में कार्यरत रहे. सब कुछ ठीक चल रहा है यह देखनेके लिये पहले कुछ वर्षों तक वह कभीकभी आते रहे. परिवारकी सफलताको देखते हुए, उन्होने अधिक लगातार ध्यान शुरू किया. वह लेडी सयाडॉके साथ सात साल रहे,उसी समय उनकी पत्नी और भाभी ने हर साल परिवारके खेतके फसलके पैसे भेजकर उन्हे प्रोत्साहित किया.
यू न्यो के साथ, वह अंत में वापस अपने गांव के लिए चले गये, लेकिन उनके पहलेके गृहस्थी जीवन मे वापस नहीं आये. लेडी सयाडॉ ने उसे अपने प्रस्थान के समय में सलाह दी थी लगन से काम करके अपनी samādhi (एकाग्रता) और paññā (शुद्ध ज्ञान) को विकसित करे,ताकि अंत में वह ध्यान सिखाना शुरू कर सके.
तदनुसार, जब यू थेट और यू न्यो प्याव्ब्वेग्यि पहुंच गये, तब वे सीधे अपनी परिवारके खेतके किनारेपे sala (विश्रांति-घर) था वहा गये और उसका उपयोग धम्म हॉल के रूप में करना शुरू किया.यहाँ उन्होने लगातार ध्यान साधना की. वहा दिन में दो बार भोजन पकाने के लिए पासमे रहनेवाली एक औरतकी व्यवस्था की...
ध्यान में तेजी से प्रगति करते हुए यू थेट एक वर्ष के लिए इस तरह से डटे रहे. इस अवधि के अंत में उन्होने अपने शिक्षक से सलाह की जरूरत को महसूस किया , और हालांकि वह व्यक्तिशः लेडी सयाडॉसे बात नहीं कर सकते थे, लेकीन वे जानते थे कि उनके शिक्षक की किताबें अपने घर पर एक अलमारी में है. इस कारणसे वे मैनुअल परामर्श करने के लिए वहाँ चले गये.
इस दरम्यान उनकी पत्नी और उनकी बहन, वे सब लंबे समयतक घर न लौटनेके वजहसे उसके साथ काफी नाराज हो गये थे. उनकी पत्नीने भी उन्हे तलाक देने का फैसला किया था.जब उनकी बहनोंने देखा यू पो थेट आ रहे है, तब सहमती हुइ की वे न तो नमस्कार करेंगे और न ही उनका स्वागत करेंगे. लेकिन जैसे ही वह दरवाजे में आये, वे खुद उसे दरियादिली का स्वागत करते हुए पाये.उन्होने थोड़ी देर बात की और यू थेट्ने उनसे माफी मांगी, जो उन्होने आसानी से मंजूर की.
बहनोंने उन्हे चाय और भोजन दिया तथा उन्होने अपनी किताबे प्राप्त की. उन्होने अपनी पत्नीको बताया की वह अब आठ शीलोंपर रहेंगे और सामान्य गृहस्थ जीवनमे नही लौटेंगे; इस समयसे वे अब से भाई और बहन के रूप में रहेंगे.
उनकी पत्नी और भाभी उन्हे सुबह भोजन के लिए हर दिन घर आने के लिए बुलाते थे और उन्हे समर्थन देने पर सहमत हुए. यू थेटने कहा कि उनकी उदारता के लिए वे अत्यंत आभारी है और उन्हें बताया कि उनको धम्म देनाही उनका कर्ज चुकानेका एक रास्ता है.
अपनी पत्नी के चचेरे भाई, यू बा सोय सहित अन्य रिश्तेदार, उनको देखने और उनके साथ बात करने्के लिये आते थे. कुछ दो सप्ताह के बाद, यू थेट ने कहा कि दोपहर के भोजन के लिए आना और जानेमे बहुत अधिक समय खर्च कर रहे है फिर इसलिये मा ह्म्यिन और मा यिनने sala मे दोपहर के भोजन भेजने की पेशकश की.
यू थेट के उत्साह की गलत व्याख्यासे, गांव के लोग उपदेश के लिए उनके पास आने के लिए पहले अनिच्छुक थे. उन्होंने सोचा कि शायद अपनी नुकसान पर क्लेश,और गांव से उनकी अनुपस्थिति की वजहसे उन्होने अपना होश खोया है. लेकिन धीरे-धीरे अपने भाषण और कार्यों कि वजहसे वह वास्तव में धम्म के अनुसार जीनेवाली एक तब्दील व्यक्ति होनेका एहसास गाववालोंको हुआ.
जल्द ही यू थेट के कुछ रिश्तेदारों और दोस्तोंने उनको विनंती करना चालू किया की वे उन्हें ध्यान सिखाना शुरू करे. यू बा सोए ने खेतों और घरेलू मामलों का प्रभार लेनेकी और यू थेट की बहन और एक भतीजी ने भोजन तय्यार करनेकी जिम्मेदारी ली. यू थेटने,जब वह 41 साल के थे तब1914 में लगभग 15 लोगों के एक समूह के लिए (Anapana)आनापान सिखाना शुरू कर दिया. (sala)शालामे में सभी छात्र रुके थे, उनमें से कुछ घर पे समय समय पर जाते थे.उन्होने अपने ध्यान के छात्रों को, साथ ही ध्यान का अभ्यास न करनेवाले लेकिन ध्यानमे दिलचस्पी दिखानेवाले लोगोंके लिए प्रवचन दिये. श्रोताओंने उनके प्रज्ञापूर्व विवेचनोंको सुननेके बाद यु थेटको धम्म का बहुत कम सैद्धांतिक ज्ञान था इसपर विश्वास करनेका इनकार कर दिया.
अपनी पत्नी और भाभी की उदार वित्तीय साहायता और परिवार के अन्य सदस्यों की मदद के कारण, सभी को भोजन और अन्य आवश्यकताए यू थेट के धम्म हॉल के लिए आनेवाले साधकोंको मिली. सुविधाए इस हद तक उपलब्ध कराए गयी की एक बार विपश्यना शिविर लेनेके वजहसे मजदूरोंने खोए हुए वेतन शुल्कका भुगतान भी किया गया.
करीब 1915 में, एक साल पढानेके बाद , यू थेटने अपनी पत्नी और उसकी बहन तथा कुछ अन्य परिवार के सदस्यों को लेकर, लेडी सयाडॉ जो अभी 70 साल के थे उनका सम्मान करने के/देने के लिये मोन्य्वा चले गये. जभी यू थेट ने उसका ध्यानका अनुभवों और जो शिविर मे पढानेके बारेमे अपने आचार्य सयाडॉ से कहा तब वे बहुत खुश हुए.
इसी भेट की समय लेडी सयाडॉ ने उनके चलते फिरते कर्मचारी यु थेट को दिये, यह कहते हुएः
"हे मेरे महान शिष्य, मेरा स्टाफ ले लो और आगे बढो. यही अच्छी तरह से रखें. मैं आपको लंबे समय तक रहने के लिए आप को नही दे रहा हू, लेकिन एक इनाम के रूप में,इसलिये की अपने जीवन में कोई दुर्घटना न हो.आप सफल हुए हो.आज से आप 6,000 लोगों को धम्म के rūpa और nama(मन और शरीर) को सिखाना चाहिए. आपने जाना हुआ धम्म ,नष्ट न होनेवाला है, इस लिये आप Sasana (बुद्ध की शिक्षाओं का युग) का प्रचार करे. sasana को मेरे बजाए नमन करे.
अगले दिन लेडी सयाडॉ ने अपने विहारोके सभी भिक्षुओं को तलब किया. उन्होंने यु थेट को 10 या 15 दिनों के लिए रहने के लिए विनंती करते हुए सभीको संबोधित करनेको कहा. सयाडॉ ने सभी bhikkhus समूहको बताया:
"आप सब ध्यान दिजिये.नीचेकी बर्माका यह आम आदमी यू पो थेट एक महान शिष्य है. मुझ जैसेही वह ध्यान पढाने में सक्षम है.आप में से जो लोग ध्यान का अभ्यास करना चाहते हैं, वे उसे अनुगमन करें. उसका अभ्यास की तकनीक जानें और अभ्यास करे. आप, दयाका थेट (एक व्यक्ति जो भिक्षुओंको इस तरह के भोजन, वस्त्र, चिकित्सा, आदि के रूप में उनकी जरूरतों की आपूर्ति करने का कार्य उठाता है), धम्म की पताका मेरे बदले मे मेरे विहारमे लहराएंगे."
यू थेट ने धर्म-ग्रंथ पढे हुए लगबग 25 भिक्षुओं को विपश्यना ध्यान सिखाया. इस समयसे वह साया थेट्ग्य्यि (साया मतलब" आचार्य"; ग्यि याने आदर के रुप मे अंत मे एक प्रत्यय) नामसे जानने जाने लगे.
लेडी सयाडॉ ने उनके बदले साया थेजी को धम्म को पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया.साया थेजी को, लेडी सयाडॉ के विपुल लेखन मुखोद्गत थे, और धर्म--ग्रंथो का संदर्भ देकर इस तरह से धम्म समझाने मे सफल थे की सबसे अधिक सीखे हुए Sayadaws (भिक्षु शिक्षकों) को गलती नहीं मिल सकती थी.लेडी सयाडॉ को उनके बजाए विपश्यना सिखाने की यह एक गंभीर जिम्मेदारी थी, लेकिन साया थेजी सैद्धांतिक ज्ञान की कमी के कारण आशंकित थे. अपने आचार्य की गहरे आदरकी वजहसे उन्होने झुकते हुए कहाः
"आपके विद्यार्थियों के बीच, मैं सबसे कम धर्म ग्रंथ पढा हू. विपश्यना सिखाते समय sasanaको आपके आज्ञप्ती अनुसार बाटना बहुतही सूक्ष्म है, फिर भी भारी प्रदर्शन करने का कर्तव्य है, सर.यही कारण से मैं अनुरोध करता हू कि,अगर किसी भी समय मैं स्पष्टीकरण के लिए पूछने की जरूरत है, तो आप मुझे आपकी मदद और मार्गदर्शन दे देंगे.कृपया मेरा आधार बनिये,और जरुरपे मुझे आवश्यकता होनेपर चेतावनी दिजिये. "
लेडि सयाडॉ ने जबाबमे आश्वस्त किया, "मैं आपको छोड नही दूंगा, मेरे निधन के समय भी."
साया थेजी और उसके रिश्तेदार दक्षिणी बर्मा के अपने गांव लौटे और लेडी सयाडॉ द्वारा दिए गए नियत कार्य के बारेमे परिवार के अन्य सदस्यों के साथ चर्चा की. साया थेजी ने बर्मा के चारों ओर यात्रा करनेका विचार किया, यह सोचकर की इससे, अधिक लोगों के साथ संपर्क होगा.लेकिन उनके भाभी ने कहा, " एक धम्म हॉल आपके लिये यहाँ पर है, और हम छात्रों के लिए भोजन तैयार करके आपको अपने काम में साहाय्यक हो सकते है. यहा क्यों नहीं रह सकते और शिविर ले सकते? यहा पे कई लोग है जो विपश्यना सिखनेके लिये आएंगे. " उन्होंने सहमति व्यक्त की, और प्यव्ब्वेग्यि मे अपनी sala पर नियमित शिविरोंका आयोजन शुरू किया.
जैसा कि उनकी भाभी ने भविष्यवाणी की थी, बहुत से लोग आने लगे,और एक ध्यान शिक्षक की रुप मे साया थेट्ग्यि की प्रतिष्ठा फैल गयी. सामान्य किसान और मजदूरों, साथ ही साथ जो लोग पाली ग्रंथों को अच्छी तरह जानते थे उनको उन्होने सिखाया.ब्रिटिश तहत बर्मा की राजधानी से यह गांव दूर नहीं था, इसलिए सरकार के कर्मचारियों और ऊ बा खिन जैसे शहर में रहने वाले लोग भी आ गये.
जैसे ही अधिक से अधिक लोग ध्यान जानने को आने लगे, साया थेजी ने यू न्यो,यू बा सोए और यू औन्ग न्युन्ट जैसे कुछ पुराने अनुभवी साधकोंको साहाय्यक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया.
केंद्र सालो साल आगे बढा जब तक वहाँ भिक्षुओं और भिक्षुणी सहित 200 छात्र शिविर मे शामिल होने लगे. वहाँ धम्म हॉल में पर्याप्त कमरे नहीं थे, इसलिए अधिक अनुभवी छात्र उनके घरों में ध्यान का अभ्यास करते थे और sala मे प्रवचन के लिए आते थे.
समय समय पर साया थेजी, लेडी सयाडॉ के केंद्रसे लौटते थे, तब खुद एकांत और मौन में रहते और दिनमे केवल एक भोजन ही लेते थे. bhikkhus भिख्खू जैसे, उन्होने कभी भी उनके ध्यान उपलब्धियों पर चर्चा नही की. अगर पूछताछ करते तो, वह कभी नहीं कहते कि ध्यान की किस अवस्था उन्होने या किसी अन्य छात्रा ने हासिल की थी, हालांकि यह व्यापक रूप से बर्मा में माना जाता था कि वह anagamiअनागामी व्यक्ति (अंतिम मुक्ति से पहलेकी आखिरी अवस्था हासिल करनेवाला) था, और वह अनागाम साया थेजी करके जाना जाता था.
चूंकि विपश्यना के आचार्य उस समय दुर्लभ थे, साया थेट्ग्यि को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पडा जो भिक्षु आचार्यों को नहीं करना पडता था. उदाहरण के लिए, कुछ लोगोंने उनको विरोध किया क्योकि वह शास्त्रों में इतना नही पढे थे. साया थेट्ग्यि ने बस इन आलोचनाओं को नजरअंदाज कर दिया और अभ्यास के परिणामही खुद बोल उठे.
जो लोग उनके पास आते थे, उन सबको अपने अनुभव के मार्गदशन से और लेडी सयाडॉ के मॅन्युअल संदर्भ का उपयोग करके उन्होने 30 साल तक ध्यान सिखाया.1945 मे, जब वह 72 साल के हुए, उन्होने हजारों लोगोंको ध्यान सिखाकर अपना मिशन पूरा किया. उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी, उनकी भाभी लकवापिडीत हुई थी,और उनका अपना खुदका स्वास्थ्य भी बिगड रहा था. इसलिए अपने भतीजों और भतीजियों को अपनी सारी संपत्ति वितरित की,और अपने धम्म हॉल के देखभाल के लिए चावलकी 50 एकड़ खेतजमीन बाजूमे रखी.
उनके पास 20 भैंस थे जो कई साल तक उनके खेतोमे हल चलाते थे.उनको जो लोग इनसे करुणतासे बर्ताव करेंगे ऐसे मालूम था ऐसे लोगोमे उन्होने बांट दिया,और ऐसे प्रार्थनासे भेज दिया, "तुम मेरे उपकारी हो.आपका आभारी हू, चावल बड़ा हो गया है.अब आप अपने काम से मुक्त हो. इस तरह के जीवनसे अच्छे अस्तित्व के लिए मुक्त हो."
साया थेजी इलाज के लिए तथा अपने छात्रों को देखने यह दोनो काम के लिए रंगून चले आये. उन्होंने उनमें से कुछ को बताया कि वह रंगून में मरेंगे और वहां पे अंतिम संस्कार हो जिस जगह पर किसी का भी कोई अंतिम संस्कार न किया हो.उन्होंने यह भी कहा कि उनकी राख पवित्र स्थानों में नही रखे क्यो की वह पूरी तरहसे विकारमुक्त नही है, मतलब, वह एक arahant अरिहंत (पूरी तरह से प्रबुद्ध) नहीं थे.
उनके छात्रों में से एक ने श्वेडागॉन पागोडा के उत्तरी ढलान पर के अर्र्झानिगॉने पर एक ध्यान केंद्र की स्थापना की थी. पास मे एक बम निवारा था जो कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बनाया गया था. साया थेजी ने ध्यान गुफा के रूप में इस आश्रय का इस्तेमाल किया. रात में वह अपने साहाय्यक शिक्षकों में से एक के साथ रहने लगे. महालेखाकार, यू बा खिन, और आयकर आयुक्त, यू सान थेइन, सहित रंगून के उनके छात्र जितना समय मिलता था उस समय मिलने आया करते थे.
उन्होने सबको, जो उसे देखने के लिए आते थे,उनको अभ्यास मे मेहनत लेना, भिक्षुओं और भिक्षुणीको जो ध्यान का अभ्यास करने के लिए आते थे उनसे अच्छी तरहसे बर्ताव करना, शरीर, वाणी और मन की अच्छी तरह से अनुशासित करना, और सब कार्योंमे बुद्ध के प्रती सम्मान देने का निर्देश दिया.
साया थेजी को हर शाम श्वेदागोन पगोडा में जाने की आदत थी,लेकिन एक सप्ताह के बाद उस खोदे हुए निवारा मे बैठने से उनको ठंड और बुखार ने पकड़ा. चिकित्सकों द्वारा इलाज करने के बावजूद, उनकी हालत बिगड गयी.जैसे ही उनकी हालत सबसे बुरी हो गयी, तब उनके भतीजियों और भतीजे प्याव्ब्वेग्यि से रंगून आये. हर रात उनके करीब 50 शिष्य, एक साथ ध्यान में बैठते थे. इस सामूहिक ध्यान के दौरान साया थेजी खुद ने कुछ नहीं कहा, लेकिन वे चुपचाप ध्यान साधना करते रहे.
एक रात करीब रातको 10:00 बजे, साया थेजी कुछ शिष्यो के साथ थे (यू बा खिन उपस्थित होने में असमर्थ थे). वह अपनी पीठ पर लेट गये थे, और उनकी श्वास जोर से और लंबे समय तक होती थी. शिष्योमे से दो आशय से देख रहे थे, जबकि बाकी चुपचाप ध्यान साधना करते थे. वास्तव में रातको 11:00 बजे, उनकी श्वास गहरी हो गयी, ऐसा लग रहा था, की हर साँस लेना और छोडने में पाँच मिनट लग जाते थे. इस तरह के तीन साँस के बाद सांस लेने को पूरी तरह बंद कर दिया, और साया थेजी का निधन हो गया.
उनके शरीर पे श्वेदागोन पगोडा के उत्तरी ढलान पर अंतिम संस्कार किया गया और सयाजी यू बा खिन और उनके अन्य शिष्योने बाद में उसी स्थान पर एक छोटे से पागोडा का निर्माण किया. लेकिन शायद इस एकमात्र आचार्यका सबसे उचित और स्थायी स्मारक यह है कि लेडि सयाडॉ ने दिये हुए सभी वर्गों में धम्म फैलाने का कार्य समाजमे अभी भी जारी है.