दिन ग्यारहका प्रवचन

शिविर के अंत के बाद कैसे अभ्यास जारी रखे

एक के बाद एक दिन हम काम करते हुए, इस धम्म शिविर के समापनका दिन का आया हैं.जब आपने काम शुरू किया, तो आपको तकनीक और शिविर के अनुशासन के लिए पूरी तरह से आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया. इस आत्मसमर्पण के बिना, आप तकनीक को साफ साफ न्याय नहीं दे सकते थे.अब दस दिन खत्म हो गये; आप अपने खुद के मालिक हैं. जब आप अपने घर वापस जाएंगे , आप शांति से समीक्षा करेंगे कि आपने यहाँ क्या किया है. आपको लगे कि आपने यहाँ जो सीखा है, वह व्यावहारिक तार्किक, और अपने आप को और अन्य सभी के लिए फायदेमंद है, तो आप इसे स्वीकार करे – इसलिये नही क्योंकि किसीने ऐसा करने के लिए कहा है, लेकिन अपने स्वेच्छेसे, खुद्के राजीसे ; न सिर्फ दस दिनों के लिए, लेकिन अपने पूरे जीवन के लिए.

यह स्वीकृती मात्र बुध्द्यात्मक तथा भावनात्मक स्तरपर ना रहे. यह जीवनका एक अविभाज्य अंग बनके रह जाय. धम्मकी स्वीकृती वास्तविक स्तरपर होनी चाहिये. धम्मका केवल वास्तविक अभ्यासही दैनिक जीवनमे स्पष्टतासे लाभ देगा.

कैसे धम्मका अभ्यास करे--नैतिकता का जीवन कैसे जिये,कैसे अपने मनका मालिक बने, मन की शुध्दता कैसी बनाये रखे यह सीखने के लिए इस शिविर मे शामिल हो गए हो. हर शाम, धम्म प्रवचन अभ्यास स्पष्ट करने के लिए थे. यह समझाने के लिए कि क्या कर रहे हो और क्यो कर रहे हो, ताकि किसीने भी गलत तरीके से या उलझन में काम करना आवश्यक है. हालांकि, अभ्यास के विवरण में, सिद्धांत के कुछ पहलुओं का अनिवार्य रूप से उल्लेख किया गया था, और क्योकि अलग पार्श्र्वभूमी से अलग अलग लोग शिविर करने के लिए आते हैं, यह नितांत संभव है कि सिद्धांतोका कुछ हिस्सा कोइ लोगोंको अस्वीकार्य हो सकता है. यदि हां, तो कोई बात नहीं, यह अलग छोड़ दिजिये. अधिक महत्वपूर्ण धम्म का अभ्यास है. एक जीवन जो दूसरों को नुकसान नहीं करता, मन के नियंत्रण का विकास, विकारसे मन को मुक्त कराने और प्यार और सद्भावना पैदा करता है ऐसा एक जीवन जिनेके लिये किसिकी भी आपत्ति नही होगी.अभ्यास सार्वभौमिक स्वीकार्य है, और यही एक धम्म का महत्वपूर्ण पहलू है, क्योकी इस वजह जो भी लाभ धम्म को जीवन मे उतारनेसे किसीको मिलेगा वह सिद्धांतों से नहीं, बल्कि अभ्यास से होगा.

दस दिनों में एक तकनीक की मोटी रूपरेखा प्राप्त कर सकते हैं;किसिसे भी इतनी जल्दी से इसमे परिशुध्द बनने की उम्मीद नहीं कर सकते.लेकिन फिर भी इस संक्षिप्त अनुभवका कम मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिए: आपने पहला कदम उठाया है, एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम उठाया है, हालांकि यह रास्ता काफी लंबा है - वास्तव में, यह एक जीवन भर का काम है.

धम्म का एक बीज बोया गया है, और एक अंकुर फूटना शुरू हुआ है. एक अच्छा माली एक छोटे पौधे का विशेष ख्याल रखता है, और इसी सेवा से, उस छोटे पौधे का धीरे-धीरे मोटी तनेवाला गहरी जड़ों का एक विशाल वृक्ष हो जाता है. फिर, सेवा की आवश्यकता बजाय, अपने जीवन भर हमारी सेवा करता है.

धम्म के इस छोटे पौधेको अब सेवा की आवश्यकता है. सिद्धांत, जिसको कुछ लोगोंका विरोध हो सकता है और अभ्यास जो सभीको स्विकार्य है ऐसे भेद करनेवाली दूसरों की आलोचना से बचाइये. ऐसी आलोचना अपनी अभ्यास को रोकनेके लिये अनुमती न दे. सुबह में एक घंटे और शाम को एक घंटे ध्यान किजिये. यह नियमित रूप से, दैनिक अभ्यास आवश्यक है. शुरू में यह दो घंटे ध्यान करने के लिए एक दिन समर्पित करना एक भारी बोझ लग सकता है, लेकिन आप जल्दी ही समझ जाएंगे कि ज्यादा समय बच जाएगा जो भूतकाल में बर्बाद किया करते थे. सबसे पहले, आपको नींद के लिए कम समय की आवश्यकता होगी. दूसरे, आप और अधिक तेजी से अपने काम को पूरा करने में सक्षम हो जाएंगे, क्योंकि काम के लिए अपनी क्षमता में बढोत्तरी होगी. जब एक समस्या पैदा होगी तो आप संतुलित रहेंगे, और तुरंत सही समाधान खोजने के लिए सक्षम होंगे. जब आप तकनीक में स्थापित हो जाएंगे, तो आप उस सुबह ध्यान करनेके वजहसे, आपको दिन भर में कोइ भी अशांती बिना ऊर्जा भरी रहेगी.

जब आप रात को बिस्तर पर लेट जाते है, पांच मिनट के लिए आप गहरी नींद के पहले शरीर में कहीं भी होनेवाली संवेदना के बारेमे सचेत रहिये.अगली सुबह, जैसे ही आप उठोगे, फिर पांच मिनट के लिए भीतरकी संवेदना का निरीक्षण किजिये. सोने से पहले और जागने के बाद ध्यान की ये कुछ मिनटे बहुत मददगार साबित होगी.

अगर आप ऐसे क्षेत्र मे रहते हो जहां अन्य विपश्यना साधक हैं, तो हप्तेमे एक बार एक घंटे के लिए एक साथ मिलकर ध्यान करे. और एक वर्ष में एक बार, दस दिन का शिविर अवश्य करे. दैनिक अभ्यास बनाए रखने से आपने यहाँ क्या हासिल किया है वह बना रहेगा, लेकिन गहराइ मे जानेके लिये दस दिनका शिविर आवश्यक है; अभी भी लंबा रास्ता जाना है. आप इस तरह से एक संगठित शिविर मे आ सकते हैं, तो बहुत अच्छा है. यदि नहीं, तो आप अभी भी अपने आप स्वयं शिविर कर सकते हो. दस दिनों के लिये और जहां कोइ भी आप के लिए अपने भोजन तैयार कर सकते हैं वहॉ आप दूसरों से एकांत मे स्वयं शिविर कर सकेंगे. तकनीक, समय सारिणी, अनुशासन का आपको पता है, अपने आप पर अब वह सब थोपना है.  स्वयंशिविर शुरू करने से पहले आप पहले अपने शिक्षक को सूचित करेंगे, तो मैं तुम्हें याद करुंगा और मेरी मैत्री, अच्छी तरंगे भेजूंगा; इससे जिसमें आप बेहतर काम कर सकें  ऐसा एक स्वस्थ वातावरण स्थापित करने में मदद मिलेगी. हालांकि, अगर आपने शिक्षक को सूचित नहीं किया है, तो भी आपको कमजोरी महसूस नही करनी चाहिए. धम्म ही आपकी रक्षा करेगा. धीरे-धीरे आपको स्वयं निर्भरता की स्थिती तक पहुँचना चाहिए. आचार्य केवल एक मार्गदर्शक है; आपको अपने खुद के मालिक होना है. हर समय किसी पर निर्भर करेंगे, तो वह कोई मुक्ती नही.

दिनमे दो घंटे का ध्यान और दस दिन की वार्षिक शिविर केवल न्यूनतम आवश्यक अभ्यास बनाए रखने के लिए कर रहे है. आपके पास और अधिक मुक्त समय है, तो आपको ध्यान के लिए इसे इस्तेमाल करना चाहिए.आप एक सप्ताह के लघु शिविर, या कुछ दिनके, यहां तक कि एक दिन ऐसा कर सकते हैं. इस तरह के लघु शिविर मे, आनापान का अभ्यास एक तिहाइ समय के लिये और बाकी समय विपश्यना के लिये लगाइये.

अपने दैनिक ध्यान में विपश्यना के अभ्यास के लिए सबसे अधिक से अधिक समय का उपयोग करें. अगर मन अशांत है, या सुस्त, अगर किसी भी कारण से संवेदना को देखना और समता का पालन करना मुश्किल है, तो जबतक आवश्यकता हो तबतक आनापान का अभ्यास करे.

जब जब विपश्यना का अभ्यास करे, संवेदना का खेल ना खेले. प्रियके के लिए खुशी और अप्रिय के लिये उदासी न हो. हर संवेदनाको वास्तविकतासे देखे. पूरे शरीर को यथाक्रमसे देखते रहे, कही कोइ एक अंग पर लंबे समयतक ना रुके.किसी भी हिस्से को अधिकतम दो मिनट पर्याप्त है, या दुर्लभ उदाहरणो में पांच मिनट तक, लेकिन उस से अधिक कभी नहीं. ध्यान रखें शरीर के हर हिस्से के संवेदना के बारे में सजगता बनाए रखे. अगर अभ्यास यांत्रिक बनना शुरू होता जाए, तो आपका ध्यान का क्रम बदल दिजीये. हर स्थिति में सजगता और समता बनी रहे, आप को विपश्यना की अद्भुत लाभों का अनुभव होगा.

न केवल जब आप आँखों बंद करके बैठते हैं तभी, लेकीन सक्रिय जीवन में भी आपको यह तकनीक लागू करनी चाहिए. जब आप काम कर रहे हैं, तब सभी ध्यान अपने काम पर होना चाहिए; इस समय आपका ध्यान हो रहा है ऐसा सोचिये.लेकिन अगर वहाँ खाली समय है, यहां तक कि पांच या दस मिनट के लिए, यह संवेदना के बारे में सजग रहे; जब आप फिर से काम शुरू करते हैं, आप ताजा महसूस करेंगे. सावधान रहें, हालांकि, जब आप सार्वजनिक स्थान पे गैर साधक की उपस्थिति में ध्यान करे, आप अपनी आँखें खुली रखो; धम्म के अभ्यास का एक दिखावा कभी ना बनाइये.

अगर आप विपश्यना ठीक से अभ्यास करते हैं, तो आपका जीवन बेहतर करनेवाला एक परिवर्तन आना चाहिए. आप दैनिक व्यवहार में अपने आचरण, अपने चालढाल और अन्य लोगों के साथ व्यवहार से पथ पर की अपनी प्रगति की जाँच करनी चाहिए. दूसरों को नुकसान पहुँचाने के बजाय, आपने उन्हें मदद करना शुरू किया है क्या? जब अनचाही स्थितियॉ पैदा होती है,तब आप समतामे रहते हो क्या? अगर मन मे नकारात्मकता शुरू होती है, कितनी जल्दी आपको इसके बारे में सजगता आती हैं? तुम्हे कितने जल्दी से संवेदना मालूम होती है जो नकारात्मकता के साथ शुरु होती है? आप संवेदना को देखना कितने जल्दी से शुरू करते हैं? आप कितने जल्दी से मानसिक संमता हासिल करते हो, और प्रेम और करुणा पैदा करने शुरू करते हो? इस प्रकारसे खुद की जांच करे, और पथ पर की प्रगति शुरु रखे.

आपने जो भी यहाँ प्राप्त किया है, न केवल इसे बनाए रखे, लेकिन यह फले फुले. अपने जीवन में धम्म स्थापित करे. इस तकनीक से सबको लाभ का आनंद मिलें, और एक खुशीका, शांतिपूर्ण, सामंजस्यपूर्ण जीवन का आनंद आपको और अन्य सभी को मिले.

चेतावनी का एक शब्द: दूसरों को आपने यहाँ क्या सीखा है यह बताने के लिए स्वागत कर रहे हैं; धम्म में कोई गोपनीयता नहीं है. लेकिन इस स्तर पर, तकनीक सिखाने की कोशिश नहीं करना. यह करनेसे पहले, एकको अभ्यास में पकना चाहिए, और सिखाने के लिए प्रशिक्षित होना चाहिए. अन्यथा वहाँ दूसरों को मदद करने के बजाय नुकसान पहुँचाने का खतरा है. किसी को आपने विपश्यना के बारे में बता दिया है और यह अभ्यास करना चाहता है, तो उनको इस तरह का एक उचित मार्गदर्शन देनेवाले संगठित शिविर मे शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करे. अभी के लिए, धम्म में अपने आप को स्थापित करने के लिए काम करे. धम्म में पके, और आप देखेंगे कि आपके जीवन के उदाहरण से, आप दूसरोंको इस पथ के लिए आकर्षित करेंगे.

धम्म कई के अच्छे के लिये और लाभ के लिए, दुनिया भर में फैल जाय.

सभी प्राणि सुखी हो, शांतिपूर्ण हो, मुक्त हो जाए.