श्री सत्य नारायण गोयन्काजी द्वारा शांति संमेलन को संबोधित किया
बिल हिगिन्स अगस्त २९, २०००न्युयॉर्क — आचार्य गोयन्काजी ने सहस्राब्दि विश्व शांति संमेलन के प्रतिनिधियों को राष्ट्र संघ के जनरल एसेंब्ली हॉल में, जहां कि पहली बार आध्यात्मिक एवं धार्मिक नेताओं का संमेलन हो रहा था, संबोधित किया।
आचार्य गोयन्काजी ने कॉन्फ्लिंक्ट ट्रांसफॉर्मेशन नामक सत्र में भाषण दिया। इस सत्र में धार्मिक समन्वय, सहिष्णुता एवं शांतिपूर्व सह-अस्तित्व इन विषयों पर चर्चा हो रही थी।
“बजाय इसके कि हम एक संप्रदाय से दूसरे संप्रदाय में रूपांतरण की बात सोचे”, गोयन्काजी ने कहा, “अच्छा होगा कि हम लोगों को दुःख से सुख की ओर, बंधन से मुक्ति की ओर, क्रूरता से करुणा की ओर ले चलें।”
गोयन्काजी ने संमेलन के दोपहर के सत्र में लगभग दो हजार प्रतिनिधि एवं प्रेक्षकों के सामने यह भाषण दिया। यह सत्र सी.एन.एन. के संस्थापक टेड टर्नर के भाषण के बाद हुआ।
शिखर संमेलन का विषय विश्व शांति है, इस को ध्यान में रखते हुए गोयन्काजी ने इस बात पर जोर डाला कि विश्व में शांति तब तक स्थापित नहीं हो सकती जबतक व्यक्तियों के भीतर शांति न हो। "विश्व में शांति तब तक स्थापित नहीं हो सकती जबतक व्यक्तियों के मन में क्रोध एवं घृणा है। मैत्री एवं करुणा भरे हृदय से ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है।"
शिखर संमेलन का एक महत्वपूर्ण पहलू विश्व में सांप्रदायिक लड़ाई-झगड़ा एवं तनाव को कम करना है। इस के संबंध में गोयन्काजी ने कहा कि जब तक अंदर में क्रोध एवं द्वेष है, तब तक चाहे वह इसाई हो, हिंदू हो, मुसलमान हो या बौद्ध हो, दुःखी ही होगा।
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उन्होंने कहा, “जिसके शुद्ध हृदय में प्रेम एवं करुणा है, वहीं भीतर स्वर्गीय सुख का अनुभव कर सकता है। यही निसर्ग का नियम है, चाहे तो कोई यह कह ले कि यहीं ईश्वर की इच्छा है।”
विश्व के प्रमुख धार्मिक नेताओं की इस सभा में उन्होंने कहा, “हम सभी संप्रदायों के समान तत्वों पर ध्यान दें, उन्हें महत्व दें। मन की शुद्धता को महत्व दें जो कि सभी संप्रदायों का सार है। हम धर्म के इस अंग को महत्व दे एवं उपरी छिलकों को—सांप्रदायिक कर्मकांड, पर्व-उत्सव, मान्यताएं—नजरअंदाज करें।”
अपने प्रवचन का सार बताते हुए गोयन्काजी ने सम्राट अशोक के एक शिलालेख को पढ़ा जिसमें उसने कहा है, “केवल अपने धर्म का सम्मान एवं दूसरे धर्मों का असम्मान नहीं करना चाहिए, बल्कि बहुत से कारणों से दूसरे धर्मों का सम्मान करना चाहिए। ऐसा करने से वह अपने धर्म की वृद्धि में सहायता तो करता ही है लेकिन दूसरे धर्मों की भी सेवा करता है। ऐसा न करे तो वह अपने धर्म की भी कब्र खोदता है और दूसर धर्मों को भी हानि पहुँचाता है। आपस में मिलकर रहना अच्छा है। दूसरों के धर्मों का जो उपदेश है उसे सभी सुनें एवं सुनने के लिए उत्सुक भी हों।”
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव कोफी अन्नान ने आशा जताई कि इस शिखर परिषद में एकत्र हुए विश्व के प्रमुख आध्यात्मिक एवं धार्मिक नेताओं की शांति की एकत्रित पुकार नये सहस्राब्दि में शांति बढ़ायेगी।
इस प्रकारकी पहलेबार हुए संयुक्त राष्ट्रसंघके शिखर परिषदकेलिये जिन अध्यात्मिक नेताओंको आमंत्रित किया था इनमे स्वामिनारायण प्रेरणाके प्रमुख स्वामी, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी अग्निवेश, माता अमृतानंदमयी देवी और दादा वासवानीके सिवा प्रमुख विद्वान डॉ करण सिंग और एल. एम. सिंघवी मौजूद थे
धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताके लोगोंका उलेख करते हुए अन्नानने कहा, "संयुक्त राष्ट्रसंघ एक बेलबूटेदार कपडा है सिर्फ साडी और सूटका नही तो पादरींओका गलपट्टी, भिक्षुणीओंका वस्त्र और लामाओंका गणवेश; बिशपका शिरोवस्त्र,यारमूल्क इत्यादि."
तिबेटन नेताओंके अनुपस्थितीके बारेमे बारबार प्रश्न उठानेके बावजूद अन्नानने प्रयत्नपूर्वक अपने कार्यमे लगकर इन प्रश्नोंका रोख परिषदके उद्दिष्टोके तरफ लाकर बोले, " शांतीदूत और शांतता प्रस्थापित करनेवाली धर्मकी उचित भुमिका फिरसे स्थापित करनेकेलिये-- बायबल या तोराह या कुरान इसपे झगडेका प्रश्न कभी नही था. सचमुच श्रद्धाका प्रश्न कभी नही था-- विश्वास और हम एक दुसरेसे कैसा आचरण करते है यह था. विश्वास दर्शक शांती और सौमनस्येका मार्ग फिरसे सिखाइये."
संयुक्त राष्ट्रसंघके नेताओंने आशा जताइ, अगर विश्वके ८३% लोक उपरी उपरी धार्मिक या आध्यात्मिक विश्वासको लेकर रहते है तो धार्मिक नेताओंने अपनी प्रभावसे अनुयायोंको शांतीके तरफ प्रभावित करना चाहिये.
संयुक्त राष्ट्रसंघको आशा है की इस परिषदकी वजहसे समाज योग्य दिशामे आयेगा, शब्दोंकी एकही दस्तावेजमे कहे, "अध्यात्मिक प्रभावका स्विकार करे और मानवी क्रूरताका निर्मूलन अपनेमे है यह पहचाने--युद्ध--और युद्धके अनेक कारणोमेसे एक गरीबी. विश्वके धार्मिक नेताओंने संयुक्त राष्ट्रसंघके साथ मिलकर मानवजातीके जरूरतेको संबोधित करनेका समय आया है."
सहभागी नेताओंने वैश्विक शांतताकेलिये घोषणापत्रपर मुहर उठानेके बाद और धार्मिक तथा आध्यात्मिक नेता आंतरराष्ट्रीय सलाह परिषद गठन करेगी; यह परिषद सयुक्त राष्ट्रसंघ तथा संघके महासचिवके साथ शांतता प्रस्थापित और रखनेमे मदत करेगी. इसके बाद शिखर परिषद बृहस्पतिवार ३१ ऑगस्टको समाप्त होगी.
जागतिक शांतता शिखरके महासचिव श्री. बावा जैन ने कहा, "धार्मिक और अध्यात्मिक नेताओंकी आंतरराष्ट्रीय सलाह परिषदका उद्देश संयुक्त राष्ट्रसंघके कार्यको मजबूत करना और बढाना है. विवादोंके समय विश्वके महान आध्यात्मिक और धार्मिक नेता ऐसे ज्वलंत विषयपर मार्ग निकालनेके लिये एकत्र हो जायेंगे ऐसी हमे आशा है. "