विपश्यना
सत्यनारायण गोयन्काजी द्वारा सिखायी गयी
साधना
सयाजी ऊ बा खिन की परंपरा मैं
विपश्यना साधना
विपश्यना (Vipassana) आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि की अत्यंत पुरातन साधना-विधि है। जो जैसा है, उसे ठीक वैसा ही देखना-समझना विपश्यना है। लगभग २५०० वर्ष पूर्व भगवान गौतम बुद्ध ने विलुप्त हुई इस पद्धति का पुन: अनुसंधान कर इसे सार्वजनीन रोग के सार्वजनीन इलाज, जीवन जीने की कला, के रूप में सर्वसुलभ बनाया। i.e., an जिवन जीनेकी कला. इस सार्वजनीन साधना-विधि का उद्देश्य विकारों का संपूर्ण निर्मूलन और परिणामतः परमविमुक्ति का उच्च आनंद प्राप्त करना है।
विपश्यना आत्म-अवलोकन के माध्यम से आत्म-परिवर्तन का एक तरीका है. यह मन और शरीर के बीच गहरे अंतरसंबंध पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसे शरीर के चेतना का निर्माण करने वाली भौतिक संवेदनाओं पर सीधे ध्यान देकर अनुभव किया जा सकता है, और यह मन की चेतना की गतिविधि को लगातार परस्पर संबंध और स्थिति में रखती है. मन और शरीर की सर्वसामान्य जड़ की यह अवलोकन-आधारित, आत्म-खोजात्मक यात्रा है, जो मानसिक अशुद्धता को पिघलाता है, जिसके परिणामस्वरूप एक संतुलित मन प्यार और करुणा से भरा होता है.
हमारे विचार, विकार, भावनाएं, संवेदनाएं जिन वैज्ञानिक नियमों के अनुसार चलते हैं, वे स्पष्ट होते हैं। अपने प्रत्यक्ष अनुभव से हम जानते हैं कि कैसे आगे जाते है या पीछे हटने की प्रकृति, कैसे दुखोको जन्म देता है या कैसे दुखो से छुटकारा पाया जा सकता है यह समझने लगता है। हम बढी सजगता, सचेतता, अभ्रांतिमय, संयमित और शांतिपूर्ण बनते हैं।
परंपरा
भगवान बुद्ध के समय से निष्ठावान् आचार्यों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी ने अबतक विपश्यना को आचार्योंकी अखंड श्रृखलाद्वारा हस्तांतरीत किया गया। इस परंपरा के वर्तमान आचार्य श्री सत्य नारायण गोयन्काजी,हालांकि भारतीय मूल के है लेकिन उनका जन्म और परवरिश म्यंमा (बर्मा) में हुइ। वहां रहते हुए उन्होंने प्रख्यात आचार्य सयाजी ऊ बा खिन, जो की उस समय एक वरिष्ठ सरकारी अफसर थे, उनसे विपश्यना सीखनेका अच्छा सौभाग्य मिला। अपने आचार्य के चरणों में चौदह वर्ष विपश्यना का अभ्यास करने के बाद श्री.गोयंकाजी भारतमे बस गये और १९६९ से लोगों को विपश्यना सिखाना शुरु किया। तब से उन्होंने विभिन्न संप्रदाय एवं विभिन्न जाती के हजारो लोगों को भारत में और भारत के बाहर पूर्वी एवं पश्र्चिमी देशों में विपश्यना सिखायी है। विपश्यना शिविरों की बढ़ती मांग को देखकर १९८२ में श्री गोयन्काजी ने सहायक आचार्य नियुक्त करना शुरू किया।
शिविर
विपश्यना दस-दिवसीय आवासी शिविरों में सिखायी जाती है। शिविरार्थियों को अनुशासन संहिता, का पालन करना होता है Code of Disciplineएवं विधि को सीख कर इतना अभ्यास करना होता है जिससे कि वे लाभान्वित हो सके।
शिविर में गंभीरता, दृढता से काम करना होता है। प्रशिक्षण के तीन सोपान होते हैं। पहला सोपान साधना के दौरान —साधक पांच शील पालन करने का व्रत लेते हैं, अर्थात् जीव-हिंसा, चोरी, झूठ बोलना, अब्रह्मचर्य तथा नशे-पते के सेवन से विरत रहना। यह आसान संहिता के शीलों का पालन करने से मन इतना शांत हो जाता है कि, जो अन्यथा स्वनिरिक्षण का कार्य संपन्न करना विशुब्धिकारक हो जाता था। अगला सोपान— नासिका से आते-जाते हुए अपने बदलते नैसर्गिक सांस पर ध्यान केंद्रित करके मनपर स्वामित्व पानेके लिये आनापान नाम की साधना का अभ्यास करना। चौथे दिन तक मन कुछ शांत होता है, एकाग्र होता है एवं विपश्यना के अभ्यास के लायक होता है—अपनी काया के भीतर संवेदनाओं के प्रति सजग रहना, उनके सही स्वभाव को समझना एवं उनके प्रति प्रतिक्रिया किये बिना समता रखना। शिविरार्थी दसवे दिन सहभागी साधक मंगल-मैत्री का अभ्यास सीखते हैं एवं शिविर-काल के अर्जित पुण्य का सभी प्राणियों को भागीदार बनाया जाता है।
यह साधना मन का व्यायाम है। जैसे शारीरिक व्यायाम से शरीर को स्वस्थ बनाया जाता है वैसे ही विपश्यना से मन को स्वस्थ बनाया जा सकता है।
साधना विधि का सही लाभ मिलें इसलिए आवश्यक है कि साधना का प्रसार शुद्ध रूप में हो इसपर बल दिया जाता है। यह विधि व्यापारीकरण से सर्वथा दूर है एवं प्रशिक्षण देने वाले आचार्यों को इससे कोई भी आर्थिक अथवा भौतिक लाभ नहीं मिलता है। शिविरों का संचालन स्वैच्छिक दान से होता है। रहने एवं खाने का भी शुल्क किसी से नहीं लिया जाता। शिविरों का पूरा खर्च उन साधकों के दान से चलता है जो पहिले किसी शिविर से लाभान्वित होकर दान देकर बाद में आने वाले साधकों को लाभान्वित करना चाहते हैं।
निश्चितही, निरंतर अभ्यास से ही अच्छे परिणाम आते हैं। सारी समस्याओं का समाधान दस दिन में ही हो जायेगा ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। दस दिन में साधना की रूपरेखा समझ में आती है जिससे की विपश्यना जीवन में उतारने का काम शुरू हो सके। जितना जितना अभ्यास बढ़ेगा, उतना उतना दुखों से छुटकारा मिलता चला जाएगा और उतना उतना साधक परममुक्ति के अंतिम लक्ष्य के करीब चलता जायेगा। दस दिन में ही ऐसे अच्छे परिणाम जरूर आयेंगे जिससे जीवन में प्रत्यक्ष लाभ मिलना शुरू हो जायेगा।
सभी गंभीरतापूर्वक अनुशासन का पालन करने वाले लोगों का विपश्यना शिविर में स्वागत है, जिससे कि वे स्वयं अनुभूति के आधार साधना को परख सके एवं उससे लाभान्वित हो। जो भी गंभीरता से विपश्यना को अजमायेगा वह जीवन में सुख-शांति पाने के लिए एक प्रभावशाली तकनिक प्राप्त कर लेगा।