विपश्यना
सत्यनारायण गोयन्काजी द्वारा सिखायी गयी
साधना
सयाजी ऊ बा खिन की परंपरा मैं
छठवे दिनका प्रवचन
सजगताविकास और संवेदना के प्रति समता का महत्व - चार तत्वों और संवेदना से उनके संबंध – घन पदार्थ उत्पन्न होने के चार कारणों - पांच बाधाए: राग(आसक्ति), द्वेष, मानसिक और शारीरिक आलस, अशांती, संदेह
छ: दिन समाप्त हो गये हैं; आपको काम करनेके लिये चार और बचे है. चार दिनों में आप कुछ मानसिक दुषितता का निर्मूलन कर सकते है, और अपने जीवन भर में इसका उपयोग करने के लिए इस विद्याको ग्रहण कर सकते हैं. आप उचित समझदारीसे काम करेंगे और कैसे दैनिक जीवन में इस विद्या को लागू करने के लिए सीखेंगे, तो निश्चित रूप से आपको बहुत फायदा होगा. इसलिए इस विद्या को अच्छी तरहसे समझ लिजिये.
यह निराशावाद का मार्ग नहीं है.धम्म दुख की कड़वी सच्चाई को स्वीकार करने के लिए हमें सिखाता है, लेकिन पीड़ा से बाहर आनेका रास्ता भी दिखाता है. इस कारण से यह आशावाद का एक रास्ता, सच्चाइसे जुडा हुआ, और “कर्तृत्व” का भी है -- जिसपर प्रत्येक व्यक्ति, पुरुष या महिला को खुद के मुक्तिके लिये काम करना चाहिये.
कुछ ही शब्दों में, पूरा मार्ग विस्तार से समझाया गया था:
सभी Sakhara(संस्कार) अनिच्च है जब कोइएक यह सच्चे अंतर्दृष्टि से समझता है,तब एक दुःख से अलग हो जाता है; यह एक शुद्धि का मार्ग है.
यहाँ शब्द saṅkhārā(संस्कार) का मतलब केवल मानसिक प्रतिक्रियाए नही, लेकिन इन प्रतिक्रियाओं के परिणाम भी है. हर मानसिक प्रतिक्रिया एक बीज है जो एक फल देता है, और जीवन में कोइएक जो कुछ अनुभव करता है वह एक फल है, अपने किये हुए कर्मोंका परिणाम. एक के सेझखिर्द, अतीत या वर्तमान के. इसलिए अर्थ है कि "सब कुछ जो उत्पन्न होता है, शांत हो जाता है, निकल जाएगा, विघटन हो जाएगा" है. इस वास्तविकता को केवल भावनात्मक रूप से स्वीकार करके, या भक्ति के वजहसे, या बौद्धिक रूप से, मन शुद्ध नहीं होगा. इसे वास्तविक स्तर पर उसका अपने भीतर उत्पन्न और नष्ट होनेकी प्रक्रिया का अनुभव करके स्वीकार कर लेना चाहिए. कोइएक शारीरिक संवेदना को देख कर सीधे नश्वरता का अनुभव करता है, तो समझदारी जो विकसित हुइ है सत्य ज्ञान है, एक का अपना ज्ञान है. और इस ज्ञान से एक दुख से मुक्त हो जाता है. भले ही दर्द रहता है, मगर एक अब इसे भोगता नही. इसके बजाय एक उस पर मुस्काता हैं, क्योंकि कोइएक इसका निरीक्षण कर सकता हैं.
दर्दनाक संवेदना को धक्का देकर दूर करना और सुखद संवेदना की तरफ खींच लेना यह पुरानी मानसिक आदत है. जबतक कोइएक दुख और सुख के इस खेलमे, ढकेलना और खींचना में उलझा रहता है, मन अशांत रहता है, और उसका दुःख बढ़ जाता है. लेकिन एक बार संवेदना के पहचान के बिना कोइएक निष्पक्ष निरीक्षण करने के लिए सीखता है तो शुद्धि की प्रक्रिया शुरू होती है, और अंधी प्रतिक्रिया की और दुःख गुणित करनेकी पुरानी आदत धीरे-धीरे कमजोर होती है और टूट जाती है. कैसे सिर्फ निरीक्षण करना यह एकको सीखना चाहिये.
इसका मतलब यह नहीं है कि विपश्यना के अभ्यास से कोइएक एक "सब्जी" हो जाता है, निष्क्रियतासे दूसरों को अपना नुकसान करने के लिए अनुमति देता है. बल्कि, कोइएक प्रतिक्रिया के बजाय कैसे काम करे यह सीखता है. इससे पहले एक प्रतिक्रिया का जीवन जीते थे, और प्रतिक्रिया हमेशा नकारात्मक है. अब आप ठीक ढंग से कैसे जिये, जिससे सत्य कार्य का स्वस्थ जीवन जीने के लिए सीख रहे हैं. जब भी जीवन मे मुश्किल स्थिति पैदा होती है, कोइएक जिसने संवेदना का निरीक्षण करने सीखा है, वह अंधी प्रतिक्रिया नही करेगा. इसके बजाय वह संवेदना के बारे में जानते हुए कुछ क्षण समतासे के साथ रुकेगा और फिर एक निर्णय लेगा और कार्यवाही करेगा. क्योंकि यह एक संतुलित मन से लिया हुआ निर्णय होनेसे यह सकारात्मक होना निश्चित है; यह एक रचनात्मक कार्यवाही है, यह अपने आप को और दूसरों को भी उपयोगी होगी.
धीरे-धीरे एक अपने भीतर की मन और शरीर के प्रपंच को देखना सीखता है, और प्रतिक्रियाए करनेसे बाहर आता है, क्योंकि अब वह अज्ञान से बाहर आता है. प्रतिक्रिया करनेकी आदत का पैटर्न अज्ञानता/अविद्या पर आधारित है. जिसने कभी अपने भीतर के सच्चाइ को देखा ही नही उसको अपने भीतर के गहराइमे क्या हो रहा है इसका पता ही नहीं, कैसे राग और द्वेष के साथ प्रतिक्रिया कर रहा है, तनाव उत्पन्न करता है जो उसे दुखी बनाता है.
मुश्किल यह है कि मन घनपदार्थ(शरीर) से कहीं अधिक मात्रा मे अस्थायी है.मानसिक प्रक्रियाए इतनी तेजी से होती है की कोइएक उसका अनुसरण नही कर सकता जब तक कि ऐसा करने के लिए वह प्रशिक्षित हो गया है. सच्चाइको जाने बिना, एक भ्रांती मे रहता है और बाहरी वस्तुए जैसे कि दृष्टी,आवाज,स्वाद आदि के प्रति प्रतिक्रिया करता है. यह तो स्पष्ट है, लेकिन कोई जब खुद का निरीक्षण करने सीखता है तब वह सूक्ष्म स्तर पर सच्चाई अलग है यह समझ जाता है. बाहरी ब्रह्मांडका अस्तित्व व्यक्तिके लिये तब होता है, जब वह उसका अनुभव करता है. याने, यह तब होता है, जब संवेदी विषय उस व्यक्तिके संवेदी इंद्रियोके दरवाजे के संपर्क मे आता है. जैसे ही वहाँ एक संपर्क होता है, वैसेही एक कंपन, एक संवेदना होगी. संवेदना का अच्छा या बुरा मूल्यांकन किसी के पुराने अनुभवों और संस्कार पर, भूतकालीन saṅkhārā(संस्कार) पर आधारीत होता है. इस रंगीन मूल्यांकन की अनुरुपतासे संवेदना सुखद या दुःखद लगती है , और संवेदना के प्रकार के अनुसार, कोइएक पसंद या नापसंद की, राग या द्वेष के साथ प्रतिक्रिया शुरू करता है. बाहरी विषय और प्रतिक्रिया के बीच संवेदना एक भूली हुइ कडी है. पूरी प्रक्रिया इतनी तेजी से होती है कि कोइएक इस से अनजान रहता है: जब तक प्रतिक्रिया सचेत स्तर तक पहुँचती है, यह दोहरा जाती है और कई बार के अरबों तेज होती है, और इतनी मजबूत होती है कि आसानी से मन पे काबू कर लेती हैं.
राग और द्वेष के मूल कारण खोज निकालके, और जहॉ वे संवेदनाके रुपमे उभरते है,वहॉ उनका निर्मूलन करके सिद्धार्थ गौतम ने आत्मज्ञान प्राप्त किया. उन्होने खुद जो कुछ किया था, वह दूसरों को सिखाया. किसिको राग और द्वेष से बाहर आना सिखानेवाले वह अकेले नही थे; उनसे पहले भी भारत मे इसे सिखाया गया था. बुध्द की शिक्षा न तो नैतिकता, और न ही किसी के मन के नियंत्रण के विकास के लिए एकमात्र नही है. इसी तरह, बौद्धिक, भावनात्मक, या भक्ति के स्तर पर ज्ञान बुद्ध से पहले भी अस्तित्व में था. उनके शिक्षा में अद्वितीय तत्व दुसरे जगह है, जिस पर शारीरिक संवेदना को जिस निर्णायक स्थान पर जहॉपे राग और द्वेष उत्पन्न होते है वहॉ पहचानकर उसी स्थान पर उसको नष्ट करना है. जब तक कोई एक संवेदना के साथ नही जुडेगा,तब तक वह मन की एक उपरी स्तर पर ही काम करता रहेगा, जबकि गहराई में प्रतिक्रिया करनेकी पुरानी आदत शुरु रहेगी. अपने भीतर सभी संवेदनाको जानना सिखनेसे और उसके प्रति समता रखनेसे कोइ एक जहॉपे प्रतिक्रिया शुरु होती है वहॉपे रोकता हैःएक दुःख से बाहर आता है.
यह सिध्दांत विश्वास पर स्वीकार करने के लिए नहीं है, और न ही यह तत्वज्ञान बौद्धिक रूप से स्वीकार करनेके लिए हैं. आप सत्य की खोज के लिए अपने आपको जांचे. यह सत्य केवल आपको अनुभव होनेके बादही स्वीकार करे. सच्चाई के बारे में सुनना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह वास्तविक अभ्यास की कृतीतक ले जाना चाहिए. बुद्ध की सभी शिक्षाओं का अभ्यास करना चाहिये और अपने आप अनुभव करे इतना कि कोइ एक दुख से बाहर आ सके.
बुद्धने समझाया की शरीर की संपूर्ण संरचना, नन्हे नन्हे परमाणु के कणों से बनी है - kalāpa(कलाप) - जिसमे चार मुलभूत तत्वों तथा उनकी अंगभूत विशेषताए साथ मिली हुई है. बाहर दुनिया में और वैसेही भीतरभी, यह आसानी से देख सकते है कि कुछ वस्तुए ठोस है - पृथ्वी तत्व; ; कुछ द्रवरुप है -- जल तत्व; कुछ गैसीय है - वायु तत्व; और हर मामले में, तापमान मौजूद है - अग्नि तत्व. हालांकि, कोई है जो खुद के भीतर सच्चाई की जांच करता है वह सूक्ष्म स्तर पर चार तत्वों को समझ सकता है. भारीपन से हलकापन वजन की संपूर्ण पंक्ति, पृथ्वी तत्व का क्षेत्र है. अग्नि तत्व तापमान के क्षेत्र, अत्याधिक ठंड से अत्याधिक गर्मी तक है. वायु तत्व बाह्यात्कारी स्थिर से बडे हलनचलन तक गती देनेका काम करता है. जल तत्व एकसाथ बंधे रखनेका, मिलाफ की गुणवत्तासे संबंधित है. एक या एक से अधिक तत्वों की विशेषता के साथ कण उत्पन्न होता हैं; दूसरे अदृश्य रहते हैं. बदले में, एक कणकी प्रमुख तत्व की गुणवत्ता के अनुसार संवेदना प्रकट होती है. अगर kalāpa(कलाप) अग्नि तत्व की एक विशेषता के साथ उत्पन्न होती हैं, एक संवेदना गर्मी या सर्दी की होती है, और इसी तरह अन्य तत्वों का होता है. इस प्रकार से संवेदना शारीरिक संरचना के भीतर उत्पन्न होती हैं. यदि एक अज्ञानी है,तो इसका मुल्यांकन करता है और संवेदना के प्रति प्रतिक्रिया करता है और अपने लिये नए दुख पैदा करता है. लेकिन अगर ज्ञान पैदा होता है, कोइ समझता है कि नन्हे नन्हे परमाणू एक या दुसरे तत्वो की प्रबल विशेषतः के साथ उत्पन्न हो रहे है और इन सभी सामान्य, बदलता हुआ प्रपंच हैं, नष्ट होनेके लिये ही उत्पन्न होता है. इस समझदारी के साथ, कोइ एक संवेदना का सामना करते समय अपने मन का संतुलन नही खोता है.
- एक अपने आप को निरिक्षण करता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है क्यों kalāpa(कलापा) उठते है: वह अपने शरीर तथा मनकी जीवन प्रवाह के लिये जो आहार देते है उससे तयार होते है. शारीरिक प्रवाह के लिये भौतिक आहार की आवश्यकता रहती है, जिसमे दो प्रकार होते हैं: जो आहार कोइएक लेता है और जो वातावरण जिसमें एक रहता है. चैतिक प्रवाह के लिये चैतिक आहार चाहिये, जो दो प्रकारके होते हैः या तो एक वर्तमान या बीता हुआ समय का saṅkhārā(संस्कार), अगर कोइएक वर्तमान समय में क्रोध का इनपुट देता है, तुरंत शरीर पे प्रभाव डालता है, और जो कलापा उभर आयेगी उसपर अग्नी धातुका प्रभाव होगा,जिससे किसीको गरमी महसुस होगी. अगर आहार डरका डाल रहे है, kalāpa(कलाप) पर उस समय वायु तत्व का प्रभाव है, और एक कांपने की संवेदना महसूस होती है; और इस प्रकारसे होते रहता है. मानसिक इनपुट का दूसरा प्रकार एक भूतकालीन saṅkhārā(संस्कार) है. हर एक saṅkhārā(संस्कार) एक बीज है जो कुछ समय के बाद एक फल देता है. जो भी संवेदना बीज डालते समय महसूस होती है उसी प्रकारकी संवेदना जब उस saṅkhārā(संस्कार)का फल मिलेगा तब वही मनके उपरी स्तरपर उत्पन्न होगी.
इन चार कारणों में से किसिको कौनसी संवेदना इस विशेष अनुभूतिसे उत्पन्न होती है इसके निर्धारण की कोशिश नहीं करनी चाहिए. जो कुछ संवेदना हो रही है उसीका ही स्वीकार कर लेना चाहिए. केवल एक नया saṅkhārā(संस्कार) पैदा करने के बिना निरीक्षण करनेका प्रयास होना चाहिए. कोइ मन के लिए एक नये प्रतिक्रिया का इनपुट नही दे रहा है, तो अपनेआप पुरानी प्रतिक्रिया संवेदना के रूप में प्रकट होकर उसके फल दे देंगे. कोइएक ध्यान देता है, और वह वही समाप्त होती है. फिर कोइएक प्रतिक्रिया नहीं करता है; इसलिए एक और पुराने संस्कार(संखारा) उसके फल देता ही है. इस तरह, सजग और समता मे रहने से, कोईएक पुराने saṅkhārā(संस्कार) को एक के बाद एक को उत्पन्न होकर नष्ट होने की अनुमति देता हैः अपने दुखोसे बाहर आता है.
नई प्रतिक्रियाओं उत्पन्न करने की पुरानी आदत समाप्त होनी चाहिए, और यह केवल धीरे-धीरे, बार-बार अभ्यास करके, निरंतरता से काम करके हो सकता है.
वहाँ बाधाए, रुकावटे रास्ते पर अवश्य हैं: पाँच मजबूत दुश्मन है जो आप और अपनी प्रगति को रोकने के लिए दबाव देनेका प्रयास करेंगे. पहले दो दुश्मनों राग(आसक्ति) और द्वेष हैं. विपश्यना का अभ्यास करने का उद्देश्य यह दो मुलभूत मानसिक दोष को नष्ट करना है, फिर भी वे ध्यान करते समय उत्पन्न हो सकते है, और अगर वे मन पर कब्जा करे, तो शुद्धि की प्रक्रिया बंद हो जाती है. आप सूक्ष्म संवेदना की या nibbāna (निब्बाण/निर्वाण) कीआसक्ति कर सकते हैं; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. तरसना(आसक्ति) एक आग जैसे जलना है, कोई मतलब नहीं की ईंधन कौनसा है; यह मुक्ति से विपरीत दिशा में ले जाता है. इसी तरह, आप पीडा के अनुभव के प्रति द्वेष पैदा करने शुरू कर सकते हैं, और फिर वापस आप मार्ग से दूर होंगे.
एक और दुश्मन आलस्य, सुस्ती है. सारी रात आप गहरी निंद मे सोये, और अभी भी जब आप ध्यान करने के लिए बैठते हैं, तो आपको बहुत नींद आती है. यह निद्रालुपन अपनी मानसिक दुषितता है, जो विपश्यना के अभ्यास से निकल जायेगी, और इसलिए ध्यान से आप को रोकने की कोशिश करते है. इस दुश्मन को आपको दबानेसे रोकने के लिए लड़ना चाहिए. थोड़ा जोरसे साँस लिजिये, या उठ जाइये, अपनी आंखों पर ठंडा पानी छिड़क लिजिये, या थोडा चलिये, और उसके बाद फिर बैठ जाइये.
वैकल्पिक रूप से, आप बडी अशांती महसूस करेंगे, एक दुसरा तरीका है जिसमें विपश्यना के अभ्यास से आप को रोकने की कोशिश यह दोष करते हैं. पुरे दिन आप इधर उधर ध्यान के अलावा अन्य कुछ करते हुए घुमते है. बाद में, आपको मालुम हुआ कि आपने समय बरबाद किया है, और रोना और पछताना शुरू किया. लेकिन धम्म के रास्ते पर रोने के लिए कोई जगह नहीं है. अगर आप एक गलती करते हैं, तो आप इसे कोइ जेष्ठ, जिस में आप विश्वास रखते है उन के सामने स्वीकार करे, और भविष्य में गलती को न दोहराने के लिए निश्चय करे.
अंत में, या तो शिक्षक के बारे में, या तकनीक के बारे में, या अपनी अभ्यास करने की क्षमता के बारे में एक बड़ा दुश्मन संदेह है. आंख बंद करके स्वीकृति फायदेमंद नहीं है, लेकिन न ही अंतहीन निरर्थक संदेह है. जितने लंबे समय तक संदेह मे आप डुबे रहेंगे, आप मार्ग पर एक भी कदम नहीं चल सकेंगे. अगर वहाँ ऐसा कुछ भी है जो आप के लिए स्पष्ट नहीं है, तो अपने मार्गदर्शक के पास आने के लिए संकोच न करे. उनके साथ इस बातपर चर्चा करे, और इसे ठीक से समझ ले. आप को कहा जाता है वैसाही अभ्यास अगर आप करे तो, परिणाम आने के लिए बांधीत हैं.
यह तकनीक कोई जादू या चमत्कार से नहीं, बल्कि प्रकृति के नियम से काम करती है. जो कोइ भी प्रकृतीके नियम के अनुसार काम शुरू करता है वह दुख से बाहर आने के लिए बाध्य है; यह सबसे बडा संभवनीय चमत्कार है.
इस तकनीक के लाभ का अनुभव लोगों ने बड़ी संख्या मे लिया है. न केवल जो खुद बुद्ध के पास आते थे, लेकिन उनके बाद भी कई सदियो तक, और वर्तमान काल मे भी. यदि एक ठीक प्रयास करके सजगता और समतामे रहकर ठीकसे इसका अभ्यास करेगा, तो दुषितता के परदे पे परदे मन के उपरी स्तर पर उभरकर बादमे नष्ट होनेके लिये बंधीत है. धम्म यहाँ और अभी अद्भुत परिणाम देता है, कोइएक काम करे तो. इसलिए पूरे विश्वास और समझदारी के साथ काम करना हैं. सभी दुःख से बाहर आने के लिए, और सच्ची शांति का आनंद लेने के लिए इस अवसर का बहुत खूब उपयोग करें.
आप सभी को असली खुशी का आनंद मिले.
सबका मंगल हो!