विपश्यना
सत्यनारायण गोयन्काजी द्वारा सिखायी गयी
साधना
सयाजी ऊ बा खिन की परंपरा मैं
प्रवचन पहला दिवस
प्रारंभिक कठिनाइयों – इस ध्यान का उद्देश- क्यों श्वसन को प्रारंभिक बिंदु के रूप में चुना जाता है - - मन का स्वरुप - कठिनाइयों के लिए कारण, और कैसे उनके साथ व्यवहार करे – टालने लायक खतरे < / i>
अंशतः क्योकि एक पुरे दिनभर बैठना और ध्यान कि कोशिश करना, और श्वसन के बारे में जागरूकता, लेकिन श्वसन के बिना कुछ भी नहीं, ज्यादातर ध्यान के इस प्रकारसे आपने अभ्यास शुरू कर दिया इसके वजहसे पहला दिन बडी कठिनाइयोंसे और असुविधाएसे भरा है.
सांस के बारे में सजगता के साथ-साथ, एक शब्द दोहराना , एक मंत्र, एक भगवान के नाम, या देवता की आकृती या नमुना के रूप की कल्पना शुरू कर दिया होता तो यह सभी कष्टोके बिना मन पर ध्यान केंद्रित करना आसानीसे और तेजीसे हो गया होता.लेकिन आपको सिर्फ सांसको जैसा है वैसे निरीक्षण करना चाहिये,कोइ भी विनिमय बिना; कोई शब्द या काल्पनिक रूप जोडे बिना.
इनको अनुमति नहीं है, क्योंकि साधना का अंतिम लक्ष मन की एकाग्रता नहीं है. मन की शुद्धि, सभी मानसिक दूषितता, भीतरकी नकारात्मकता, और इस प्रकार सभी दुख से मुक्ति प्राप्त करने, संपूर्ण ज्ञान प्राप्तके लिये एकाग्रता केवल एक मदद, उच्च लक्ष्य के लिए एक कदम है.
प्रत्येक बार कोई अशुद्धता जैसे कि क्रोध, घृणा, वासना, भय आदि के रूप में मन में उठती है, तो एक दुखी हो जाता है.जब भी कुछ अनचाही होती है, एक तनावपूर्ण हो जाता है और भीतर ही भीतर गांठे बांधने शुरू करता है. जब भी कुछ मनचाही नही होती है, फिर वह भीतर तनाव उत्पन्न करता है. पूरे जीवन भर इस प्रक्रिया को तबतक दोहराता है जबतक गॉरडीयन नॉट की तरह वह पूरे मानसिक और शारीरिक स्तरपर जटिल गांठोकी गठरीस्वरूप नही हो जाता. और वह इस तनाव को अपने आप तक सीमित नही रखता, बल्की वह ये तनाव जो कोई उसके संपर्क में आता है, उनको बांटता है. निश्चितही यह जिनेका सही तरीका नहीं है.
आप इस ध्यान शिविर मे जीने की कला सीखने के लिए आये हो: अपने भीतर शांति और सौहार्दपूर्वता कैसी रहे, और अन्य सभी के प्रति शांति और सद्भाव कैसे उत्पन्न हो; एकात्मक प्यारसे भरा हुआ मन , करुणा के साथ, दूसरों की सफलता पर आनंद, समता के साथ,पुरे शुध्द मनसे प्रगति करते हुए दिन ब दिन सुख चैनसे कैसे जिए.
सौहार्दपूर्वक जीने की कला सीखने के लिए, पहले एक को विसंवाद के कारणों का पता लगाना चाहिए. इसका कारण हमेशा भीतर पडा रहता है, और इसीलिये आपको अपने आप की सच्चाई खोजनी चाहिये. यह तकनीक आपको अपनी मानसिक और शारीरिक संरचना की जांच करने की मदद करता है जिसके प्रती बहुत आसक्ती रहनेसे परिणामस्वरूप केवल तनाव, दुख होता है. प्रायोगिक स्तरपर एक को अपना मानसिक और शारीरिक स्वभाव समझना चाहिए; उसके बाद ही एक मन और शरीर के परे जो कुछ है उसका अनुभव कर सकता है. इसलिये यह सच्चाई का बोध करनेकी, आत्मबोधकी, अपने आप के सच्चाई की जांच करनेकी एक विद्या है. यह ईश्वरप्राप्ति की एक विद्या भी कही जा सकती है, क्यो की आखिरकार ईश्वर याने सच्चाई है, प्यार है, पवित्रता है.
.सच्चाई का प्रत्यक्ष अनुभव आवश्यक है. उपरी, दिखावू, मलिन सच्चाईसे, सूक्ष्म सच्चाई तक, मन और शरिरकी सूक्ष्मतम सच्चाई तक “खुद” को जानिये. इन सब अनुभव करने के बाद, मन और शरिर के परे अंतिम सच्चाई का अनुभव के लिये कोइ भी एक आगे जाता है.
श्वसन यह यात्रा शुरू करने के लिए एक उचित बिंदु है. ध्यान के लिये स्वनिर्मित या काल्पनिक शब्द या आकृती का उपयोग करनेसे आप अधिक से अधिक कल्पनाए, अधिक से अधिक भ्रम की दिशा में जाएंगे; यह अपने आप के बारे में सूक्ष्म सच्चाई की खोज करने में मदद नहीं करेगा. सूक्ष्म सच्चाई तक वेधन करनेके लिये, एक को सच्चाई के साथही शुरू करना होगा, एक स्थूल सच्चाई जैसे की सांस . इसके अलावा, अगर कोई शब्द का या कोई देवता के रूप का भी प्रयोग किया जाता है, तो तकनीक(विधी) सांप्रदायिक हो जाती है. वह शब्द या आकृति एक संस्कृतीकी, एक धर्म या किसी अन्य धर्म की पहचानी जाएगी, और विभिन्न पार्श्वभूमीके लोगों के लिए यह अस्वीकार्य हो सकता है. दुख एक सार्वजनीन रोग है. इस रोग का इलाज सांप्रदायिक नहीं हो सकता है; यह भी सार्वजनीन होना चाहिये. श्वसन के बारे में सजगता इस आवश्यकता को पूरा करती है. सांस सभी के लिए समान है: इसको देखना सभी के लिए स्वीकार्य होगा. रास्तेका हर कदम सांप्रदायिकता से पूरी तरह मुक्त होना चाहिए.
अपने बारे में सच्चाई का पता लगाने के लिए सांस एक साधन है.असल में, अनुभवात्मक स्तर पर, आप अपने शरीर के बारे में बहुत कम जानते हैं. आप केवल उसके बाहरी रूप, विभागों और इसके कार्य का आप होशपूर्वक नियंत्रित कर सकते है उनके बारेमे जानते है. आप आंतरिक अंगों जो अपने नियंत्रण से बाहर काम करते हैं, जिन पेशी से पूरा शरीर बना है, और जो हर क्षण बदलते रहती है इनके बारेमे कुछ भी पता नहीं रहता.असंख्य जैव रासायनिक और विद्युत चुम्बकीय प्रतिक्रियाए पूरे शरीर में लगातार होती रहती हैं, लेकिन आपको उनका ज्ञान नहीं होता है.
इस मार्ग मे, जो खुद के बारे मे अज्ञात है वह आप को ज्ञात हो जाना चाहिए. इस उद्देश्य के लिए श्वसन से मदद मिलेगी. क्योंकि श्वसन ही शरीरका एक कार्य है कि जो या तो जागरूकता या बेहोश, जानबूझकर या स्वाभाविक हो सकता है जो की एक अज्ञात से ज्ञात तक जानेके लिये एक सेतु के रुपमे काम करता है. कोइ भी सजग, जानबूझकर श्वास के साथ शुरू करता है, और प्राकृतिक, सामान्य सांस के बारे में सजगता तक आगे जाता है. और वहाँ से आप खुद के बारे में अभी भी सूक्ष्म सत्य के लिए आगे जाएंगे. हर कदम सत्यका एक कदम है; हर दिन आपको खुद के बारेमे सूक्ष्म सच्चाई और अपने शरीर और मन के बारे में खोज करने के लिए आगे भिंदते हुए जाना होगा.
आज आपको सांस का केवल निरीक्षण करने के लिए कहा गया था, लेकिन उसी समय, आप में से हर कोइ मन को देख रहा था, क्योंकि सांस निसर्गतः मानसिक स्थिति से मजबुतीसे जुड़ा है. जैसे ही किसी भी अशुद्धता,विकार मन में उठता है, सांस असामान्य हो जाता है- कोइ भी थोडासा तेजी से,भारी सांस लेना शुरू करता है. जैसेही विकार दूर हो जाता है, सांस फिर से सौम्य हो जाती है. इस प्रकार सांस न केवल शरीर की, लेकिन मन की सच्चाई का अनुसंधान करता है.
मन की एक सच्चाइ है, जिसका आपने आज अनुभव करने लगे, की हमेशा एक वस्तुसे दूसरे वस्तुतक भटकने की उसकी आदत है.इसको सांस पर या किसी वस्तु पर टिकनेकी आदत नहीः इसके बजाय हरतरफ वह तेजीसे दौडता है.
और जब वह भटकता है, तो मन कहा पे जाता है? अपने अभ्यास से आप देखेंगे कि यह या तो भूतकाल या भविष्य में भटक रहा हैं. यह मन की आदत नमूना है; यह वर्तमान क्षण में रहना नहीं चाहता. असल में, एक को वर्तमान में रहना चाहिये. जो भूतकाल है, वह पिछे चला गया; जो कुछ भी भविष्य है वह किसी की पहुंच के बाहर है, जब तक वह वर्तमान नही बनता है. भूतकाल को याद करना और भविष्य के लिए सोचना महत्वपूर्ण हैं, लेकिन केवल इस हद तक वह वर्तमान के साथ परिणाम करने में मदद करता है. अब तक इसकी गहरी आदत की वजह से, मन वर्तमान स्थिति से बचने की कोशिश करता है और लगातार एक तो अतीत या भविष्य जो अप्राप्य है उसमे जाता है, और इसलिये यह जंगली मन अशांत, दुःखी रहता है. साधनाविधी जो आप यहाँ सीख रहे हैं उसको जीने की कला कहा जाता है, और जीवन वास्तव में केवल वर्तमान में ही जीना चाहिये. इसलिये,वर्तमान स्थिति मे कैसे जिना चाहिये यह सिखनेके लिये मनको सांस पर जो नासिका के भितर आ रहा है और बाहर जा रहा है उसका सहारा लेना पहिला कदम है. यह इस क्षण की सच्चाइ है, हालांकि यह एक दिखावा ही है. जब मन दूर भटकता है, किसी भी तनाव के बिना मुस्कराइये, यह सच्चाई जानते हुए कि, अपनी पुरानी आदत की वजह से यह भटकता है इसका स्वीकार करे. जैसे ही मालूम हुआ कि मन भटक गया, स्वाभाविकतः अपने आप, श्वसन के लिये सजगता वापस आ जाएगी.
या तो भूतकाल की या भविष्य के विचारों में हिलने-डुलनेकी मन की प्रवृत्ति को आपने आसानी से पहचान लिया. किस प्रकार के विचार यह हैं? आज आपने देखा है कि कई बार विचार किसी भी क्रम, कोइ भी सिर या पूंछ के बिना उत्पन्न होतें हैं.इस तरह का मानसिक व्यवहार आमतौर पर पागलपन की निशानी मानी जाती है. अभी, तथापि, आप सभी को पता चला है कि आप समान रूप से पागल हो रहे हैं, अज्ञान, भ्रम, भ्रम-मोह में खो गये है. यहां तक कि जब वहाँ विचार करने का क्रम है, वे अपने विषय या तो सुखद या अप्रिय जैसे है. यदि यह सुखद है, तो अच्छा लगनेकी प्रतिक्रिया शुरु हो जाती है, जो आसक्ति, संलग्न-राग में विकसित होती है. यदि यह दुखद है तो अप्रिय की प्रतिक्रिया होती है, जो एक द्वेष, घृणा-द्वेष में विकसित होती है. मन लगातार अज्ञान, तृष्णा, और घृणा से भर जाता है. अन्य सभी अशुद्धियों इन तीन बुनियादी जडोसे उत्पन्न होती है, और हर अशुद्धता दुखका कारण बनती है.
इस विधी का लक्ष्य मन को शुद्ध करना, धीरे-धीरे भीतर की नकारात्मकता निकालकर दुख से मुक्त करना है. गहराइसे खुदके अचेतन को उजागर करके और वहाँ छिपे हुए जटिलता को हटाने के लिए यह एक शस्त्रक्रिया है. यहाँ तक की तकनीक का पहले कदमसे ही मन शुद्ध होना चाहिए, और यह वस्तुस्थिती है: सांस को देख कर, न सिर्फ मन पर ध्यान केंद्रित करने का, लेकिन इसको शुद्ध करना भी आपने शुरु किया. शायद आज वहाँ केवल कुछ ही क्षणों के लिये ही मन को पूरी तरह से अपने श्वासपर ध्यान केंद्रित किया गया था, लेकिन यह प्रत्येक क्षण मन की आदत का ढाचा बदलने में बहुत शक्तिशाली है. उस पल में, आपको वर्तमान सच्चाइ अवगत हुइ, किसी भी भ्रम के बिना सांस का प्रवेश करना या नासिका से बाहर जाना. और आप अधिक सांस की आसक्ति, या अपने श्वास के प्रति द्वेष नहीं कर सकते है: बस आप केवल सांस का निरीक्षण किसी भी प्रतिक्रिया के बिना करते है. इस तरह के एक पल में, मन तीन मूलभूत विकारों से मुक्त है, याने वह शुद्ध है. सचेत स्तर के इस शुद्धता का यह क्षण पुराने बेहोशीमे जमा हुए विकारों पर बडा धक्का देता है. इन सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों के संपर्क से विस्फोट होता है. इनमेसे बेहोशी में छिपे हुए कुछ विकार/दोष सचेत स्तर पर आ जाते है, और विभिन्न मानसिक या शारीरिक असुविधाएँ के रूप में प्रकट होते है.
जब कोइ एक ऐसी स्थिति का सामना कर रहा है, वहाँ विक्षुब्ध होना,और कठिनाइयों को बढावा देने का खतरा है.हालांकि, जो एक समस्या लग रही है यह वास्तव में ध्यान में सफलता का एक संकेत है, यह एक बात का दर्शक है कि वास्तव में तकनीक ने अपना काम शुरू कर दिया है. अचेतन में ऑपरेशन शुरू हो गया है, और वहाँ से छिपा हुआ पस घावसे बाहर आना शुरू हुआ है. हालांकि यह प्रक्रिया अप्रिय है, यह एक ही रास्ता पस से छुटकारा पाने के लिए, अशुद्धियों को दूर करने के लिए है. कोइ भी उचित तरीके से काम करना जारी रखेगा, इन सभी कठिनाइयॉ धीरे-धीरे कम होगी. कल थोडीसी आसानी होगी, अगले दिन से तो अधिक अधिक हो जाएगी. धीरे धीरे, अगर आप काम करते हो सभी समस्याए समाप्त हो जाएगी.
कोई भी आप के लिए काम नही कर सकता; अपने आप को काम करना है. आपको अपने भीतर कि सच्चाई की खोज करनी है. आप खुदको मुक्त कराना है.
कैसे काम करे इसके बारे में कुछ सलाह:
ध्यान घंटे के दौरान, हमेशा चार दिवारों के अंदर ध्यान करे. अगर आप बाहर सीधे प्रकाश और हवा के संपर्क में ध्यान करने की कोशिश करेंगे, तो आप अपने मन की गहराई तक वेधन नही कर पाएंगे. विराम के दौरान आप बाहर जा सकते हैं.
आपको शिविर स्थान की सीमाओं के भीतर ही रहना चाहिए. आप अपने मन पर शल्यक्रिया कर रहे हो; इस लिये शल्यक्रिया कमरे में ही रहे.
शिविर की पूरी अवधि के लिए, किसी भी परिस्थिती मे आपको कठिनाइयों का सामना करना पडे तो भी रहनेका संकल्प करे. जब आपरेशन के दौरान समस्याओ पैदा होगी, यह मजबूत संकल्प को याद करे. यह शिविर बीच में छोड़ना हानिकारक हो सकता है.
इसी तरह, सभी अनुशासन और नियमों, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण मौन का नियम है इनका पालन करने का एक मजबूत दृढ़ संकल्प करे. इसके अलावा समय सारिणी का पालन,विशेषतः समूह ध्यान की तीन एक घंटे की प्रत्येक दिनकी बैठक हॉल में करने का संकल्प करे.
ज्यादा खानेके खतरे से बचिये, अपने आप तंद्रिल का शिकार न बने, और अनावश्यक बात न करे.
जैसे बताया जाता है वैसाही काम करे. किसी निंदा के बिना, इस शिविर की अवधि तक कुछ भी आपने पढ़ा है या सीखा है उसे एक तरफ छोड़ दिजीये. विधीयोंको मिलाना बहुत खतरनाक है.अगर कोइ भी मुद्दा आप के लिए स्पष्ट नहीं है, तो स्पष्टीकरण के लिए मार्गदर्शक से मिले. लेकिन इस तकनीक के लिए एक निष्पक्ष न्याय दे; यदि आप ऐसा करेंगे, तो आप अद्भुत परिणाम प्राप्त करेंगे.
तृष्णा, घृणा, भ्रम के बंधन से खुद को छुटकारा पाने के लिए, और असली शांति, असली सद्भाव, असली खुशी का आनंद लेंनेके लिये समय, अवसर और तकनिक का सबसे अच्छा उपयोग करें.
आप सभी के लिए असली खुशी मिले.
सभी प्राणी खुश रहे.