विपश्यना
सत्यनारायण गोयन्काजी द्वारा सिखायी गयी
साधना
सयाजी ऊ बा खिन की परंपरा मैं
चौथे दिन का प्रवचन
विपश्यना का अभ्यास कैसा करे इसपर के प्रश्न - कम्मा का अधिनियम - मानसिक कार्य का महत्व - मन के चार समुच्चय: सजगता, बोध, संवेदना, प्रतिक्रिया – सजगता और समता रखकर दुख से बाहर आनेका मार्ग है
चौथा दिन बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है.आपने भीतर की धम्म की गंगा में डुबकी लेते हुए, शारीरिक संवेदना के द्वारा खुद के सच्चाई के बारे में खोज शुरू कर दी है. अज्ञान की वजह से, यह संवेदानाए भूतकाल में,अपने दुख को बढावा देनेकी कारण बनती थी, लेकिन यह संवेदना भी दुख के निर्मूलन के लिए साधन हो सकती है. आपने शारीरिक संवेदना का निरीक्षण करना और उसके प्रति समता रखना सिखके मुक्ति के मार्ग पर एक पहला कदम उठाया है.
विधी(तकनीक) के बारे में कुछ सवाल है जो अक्सर आते है:
क्यों क्रम से ही शरीर पर ध्यान ले जाए, और इसी क्रम से ही क्यो? किसी भी क्रम का पालन करे, लेकिन एकही क्रम आवश्यक है. अन्यथा शरीर के कुछ भाग छुट जाने का खतरा है, और यह भाग मुर्छित, रिक्त रहेंगे. संवेदनाए पूरे शरीर में होती रहती हैं, और इस तकनीक से, उन्हें हर जगह अनुभव करने की क्षमता विकसित करना बहुत महत्वपूर्ण है. इस उद्देश्य से क्रम में आगे बढ़ना बहुत उपयोगी है.
अगर शरीर के किसी भाग मे संवेदना मालूम न हो,तब एक मिनट ध्यान देकर वहॉ रुक जाइये. हकीकत में जैसे कि शरीर के कणो कणोमे होती है,वैसेही वहॉपे संवेदनाए है,लेकिन यह इतनी सूक्ष्म है की आपका मन इसे ग्रहण नही कर पाता, और इसलिए यह क्षेत्र मूर्छित लगता है. एक मिनट के लिए शांत चित्तसे ध्यान देकर, स्वस्थ और समतासे रुकिये. संवेदना की आसक्ति,या मूर्छाके प्रती द्वेष पैदा न करे. यदि आप आसक्ति या द्वेष पैदा करेंगे, तो आप अपने मन के संतुलन खो देते है, और असंतुलित मन बहुत सुस्त होता है; यह निश्चित रूप से अधिक सूक्ष्म संवेदना का अनुभव नहीं कर सकता. लेकिन अगर मन संतुलित रहता है, तब यह तीक्ष्ण और अधिक संवेदनशील हो जाता है, सूक्ष्म संवेदना का पता लगाने में सक्षम होता है. एक मिनट के लिये उस भागका समतासे निरिक्षण करे,उससे अधिक नही. एक मिनट के भीतर कोई संवेदना प्रकट नही हुई, तो मुस्करा कर आगे चलिये. अगले बार, फिर एक मिनट के लिए रुकिये; जल्दीही या बाद में आपको वहाँ पे और पूरे शरीर में संवेदना का अनुभव होना शुरू हो जाएगा. आप एक मिनट के लिए रुके और अब भी एक संवेदना महसूस नहीं कर सके, तब आप अगर कमरेमे हो तो कपडेके स्पर्शको जाननेका प्रयास करे, या खुले मे हो तो वातावरण के स्पर्श को जाने. इस उपरी स्तरके संवेदनासे शुरु करे और धीरे-धीरे आपको दुसरे भागोंकी संवेदना भी अच्छी तरह से महसूस होना शुरू होगा. इस उपरी स्तरके संवेदनासे शुरु करे और धीरे-धीरे आपको दुसरे भागोंकी भी अच्छी तरह से महसूस होना शुरू होगा.
जब शरीर के एक भाग पर ध्यान लगा है और संवेदना किसी अन्य जगहमें शुरू होती है, तो यह संवेदना देखने के लिये किसिको आगे या पीछे जाना चाहिये? नही; क्रमसे ही आगे बढिये. शरीर के अन्य भागों की संवेदना को रोकने की कोशीश मत किजिये - आप ऐसा कर भी नही सकते - लेकिन उन्हें कोई महत्व भी न दे. हर संवेदना का जब इस स्थान पर क्रमसे आये केवल तब निरीक्षण करें.नहीं तो आप एक स्थान से दूसरे में शरीरके कई भाग छोडते हुए, केवल स्थूल संवेदना को देखते हुए छलांग मारते रहेंगे. आप को शरीर के हर भाग की स्थूल या सूक्ष्म,सुखद या दुःखद,स्पष्ट या अस्पष्ट संवेदना का निरिक्षण करने के लिए अपने आप को प्रशिक्षित करना है. इसलिए ध्यान को,एक जगह से दुसरे जगह छलांग मारनेकी अनुमति मत दिजिये.
सर से पाव तक ध्यान की यात्रा करनेके लिये किसिको कितना समय लग सकता है? कौनसी स्थिति से किसीको सामना करना पडता है उसपर यह निर्भर होता है. एक निश्चित क्षेत्र में आपका ध्यान रखने के लिए आदेश है, और जैसे ही आपको संवेदना मालूम हुई, आप आगे बढ जाईये. अगर मन काफी तीक्ष्ण है, जैसेही आपका ध्यान उस क्षेत्र पर जाएगा और आपको संवेदना की जानकारी होगी,तब आप तुरंत आगे बढ़ सकते हैं. अगर यह स्थिति पूरे शरीर में होती है, तो दस मिनटमेही सर से पाव तक यात्रा करना संभव हो सकता है, लेकिन इस समय अधिक तेजी से यात्रा करना उचित नहीं है. तथापि,अगर मन सुस्त है, तब वहाँ कई भाग हो सकते है जिसमें यह संवेदना प्रकट होने के लिए एक मिनटतक प्रतीक्षा करने की आवश्यकता हो सकती है. ऐसे स्थिती में, सिर से पैर तक यात्रा करने के लिए तीस मिनट या एक घंटा भी लग सकता है. कितना समय पुरी यात्रा के लिये लगता है इसको महत्व नही है. बस धीरजसे,लगातार काम करते रहे; आपको निश्चित रूप से सफलता मिलेगीही.
कितना बडा क्षेत्र ध्यान के लिये लेना चाहिये? शरीर का दो या तीन इंच चौड़ा भाग लिजिये; बाद मे दो या तीन इंच आगेका लिजिये, और वैसेही आगे बढिये. अगर मन सुस्त है, तो बडा हिस्सा लिजिये, उदाहरण के लिये, पूरा चेहरा, या पूरी दायिनी ऊपरी बांह ले, फिर धीरे-धीरे ध्यान का क्षेत्र कम करने का प्रयास करें. अंततः आप शरीर के हर कण में संवेदना महसूस करने में सक्षम हो जाएंगे, लेकिन अब के लिए, दो या तीन इंच का एक क्षेत्र काफी अच्छा है.
क्या किसी को सिर्फ शरीर की उपरी स्तर पर या भीतर की भी संवेदना महसूस करनी चाहिए? कभी कभी साधक जैसे ही विपश्यना शुरू करता है भीतर कि संवेदना महसूस करता है; कभी कभी सबसे पहले उनको बाहरकी संवेदना महसूस होती है. किसी भी प्रकारकी हो,पूर्णतः ठीक है. अगर संवेदना केवल उपरी स्तर पर ही महसूस होती हैं, तभी जब तक आप शरीर की सभी भागोमे उपरी स्तर कि संवेदना महसूस नही करेंगे तबतक उन्हें बार बार निरीक्षण करे .सभी जगह कि उपरी स्तर कि संवेदना के अनुभव के बाद, आप बाद में भीतर को वेधन करना शुरु किजिये. धीरे-धीरे आपका मन संवेदना को हर जगह महसूस करने की क्षमता पाएगा, दोनों प्रकारसे बाहर और भीतर से, शारीरिक रुपबंध के हर भाग मे संवेदना महसूस होगी. लेकिन शुरू करने के लिए, उपरी स्तर की संवेदना काफी अच्छी हैं.
यह पथ संवेदना क्षेत्र के माध्यम से जो संवेदना के अनुभव से परे है ऐसे सच्चाइतक ले जाता है. अगर आप संवेदना की मदद से अपना मन शुद्ध करते रहेंगे, तो निश्चित रूप से आप अंतिम लक्ष्य तक पहुंच जाएंगे.
जब कोईएक अज्ञानी है, तब संवेदनाए अपने दुःखोको बढावा देनेकी एक कारण बनती है, क्योंकि उसके प्रती हम आसक्ती या द्वेष की प्रतिक्रिया करते है. वास्तव में समस्याए उठती है, तनाव उत्पन्न होता है और शारीरिक संवेदना के स्तर पर अनुभव होता है; इसलिए समस्या को हल करने के लिए, इस स्तरपर मन की आदत पैटर्न बदलने के लिए काम करना चाहिए. किसी भी प्रतिक्रिया के बिना,उनके बदलते रहनेका, अव्यक्तिगत प्रकृति स्वभाव का स्विकार करते हुए , अलग अलग संवेदना की सजगता सीखनी चाहिए. ऐसा करके, कोईएक अंधे प्रतिक्रिया की आदत से बाहर आता है, अपने आप को दुख से मुक्त करता है.
What is a sensation?संवेदना क्या है?- किसीको भी जो कुछ शारीरिक स्तर पर जानकारी होती है उसिको संवेदना कहते है - कोई भी नैसर्गिक, सामान्य, साधारण शारीरिक संवेदना होती है, चाहे सुखद या दुःखद, स्थूल या सूक्ष्म, तीव्र या दुर्बल. इस आधार पर कि यह वातावरण की स्थिति से उत्पन्न हुइ है, या लंबे समय तक बैठनेसे हुइ है, या एक पुराने रोग के वजहसे उत्पन्न हुइ है इस कारण से संवेदना की कभी भी उपेक्षा मत किजिये. कोइ भी कारण हो, यह तथ्य यह है कि आपको संवेदना की जानकारी हो रही है. इससे पहले आपने अप्रिय संवदना को दूर ढकेलनेकी कोशिश करके, सुखद के तरफ आनेकी कोशिश की. अब आपने संवेदना की पहचान के बिना सिर्फ वस्तुनिष्ठ निरीक्षण किया.
यह बिना चयन एक निरिक्षण है. कभी संवेदना का चयन करने का प्रयास न करें; इसके बजाय स्वाभाविक रूप से जो उभरता है उसे स्वीकार करे. अगर आप कुछ विशेष प्रकारकी, कुछ असाधारण की तलाश शुरू करते हैं, तो आप खुद के लिए मुश्किलें पैदा करोगे, और मार्गपर प्रगति नही कर पाएंगे. यह तंत्रविधी कुछ खास अनुभव करने के लिए नहीं, बल्कि कोई भी संवेदना का सामना करने में समता रखने के लिए है. भूतकाल में आपके शरीर में वैसेही संवेदना होती थी, लेकिन आपको उसकी सचेतता नही थी, और आप प्रतिक्रिया व्यक्त करते थे. अब आप सजगता रखना और उसके प्रति प्रतिक्रिया न करना, शारीरिक स्तर पर जो कुछ हो रहा है उसे अनुभव करना और समता रखना सीख रहे है,
अगर आप इस तरह से काम करते रहेंगे, तब धीरे-धीरे प्रकृति के पूरे कानून आप को स्पष्ट हो जाएंगे. धम्मका मतलब हैःप्रकृति(निसर्ग), कानून, सत्य है. अनुभवात्मक स्तर पर सच्चाई को समझने के लिए, किसीको भी यह शरीर के ढांचे के भीतर की जांच करनी चाहिए. सिद्धार्थ गौतम ने बुद्ध बनने के लिए यही किया था, और यह उनको स्पष्ट हो गया, और उन्होने जैसे काम किया वैसेही कोइ भी काम करेगा तब उसको भी यह स्पष्ट हो जाएगा, की पुरे विश्व मे, शरीर के भीतर और बाहर, सब कुछ बदलते रहता है. कुछ भी पदार्थ अंतिम नही है; सब कुछ होने और नष्ट होनेके प्रक्रिया में शामिल है - bhava(भव).और एक सच्चाई स्पष्ट हो जाएगी: कुछ भी अकस्मात नही होता है. हर बदल के लिये एक कारण है जो फल देता है, और बदले में उस फल के प्रभाव से और अगले बदलाव का कारण बन जाता है, कारण और परिणाम की एक अंतहीन श्रृंखला बनती है. और अभी भी एक और नियम स्पष्ट हो जाएगा: जैसेही कारण वैसाही फल है;जैसा बीज वैसाही फल होगा.
एक ही मिट्टी पर कोईएक दो बीज बोता है,एक गन्नेका और दुसरा नीमकाneem -- एक बहुत कडवा उष्णकटिबंधीय पेड़. गन्ने के बीज से एक पौधा तयार होता है जिसका रेशा रेशा मीठा होता है, नीम के बीजसे, जो पौधा होता है उसका हर तन्तु कड़वा होता है. क्यों प्रकृति एक पर दया करती है और दुसरे पर इतनी निष्ठूर ऐसे कोई भी पूछ सकता है. तथ्य यह है कि प्रकृति न ही दयालू न निष्ठूर है; यह तय नियमों के अनुसार काम करता है. प्रत्येक बीज की गुणवत्ता प्रकट करने मे प्रकृति केवल मदद करती है. एक मिठा बीज बोता है, तो फसल भी मिठास होगी. एक कड़वाहट के बीज बोता है, तो फसल भी कड़वाहट होगी. जैसा बीज वैसा फल होगा; जैसा काम होगा वैसा ही परिणाम होगा.
समस्या यह है कि कोईएक पैदावार के समय बहुत सतर्क रहता है, मीठा फल प्राप्त करने के लिए इच्छुक है, लेकिन बुवाई के मौसम के दौरान बहुत बेपरवाही करता है, और कड़वाहट के पौधों के बीज डालता है.एक मीठा फल चाहता है, तो बीज का उचित प्रकार बोना चाहिए. प्रार्थना या एक चमत्कार की उम्मीद करना स्वयं को केवल धोखा है; किसीको भी प्रकृति को समझकर उसके के कानून के अनुसार जीना चाहिए. किसको भी अपने कृती के बारे में सावधान रहना चाहिए, क्योंकि यह बीज बो रहे है उसीके गुणवत्ता अनुसारही मिठा या कड़वा फल प्राप्त होगा.
कृती तीन प्रकार के होते है :शारीरके, वाणीके और मनके. कोई जो स्वयं को अवलोकन करने को सीखता है तो जल्दी ही समझ जाता है कि मानसिक कृती सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही जो बीज है जो इस कृती का फल देगा. वाचिक और शारीरिक क्रियाओं केवल मानसिक कृती का बाह्य प्रक्षेपण,तीव्रता मापनेका एक प्रमाण है. वे मानसिक कृती से प्रारंभ होते है, और यह मानसिक कृती बाद में वाणी या शरीर स्तर पर प्रकट होती है. इसलिए बुद्ध ने घोषित कियाः
मन सभी क्रिया से आगे है,
मन सबसे ज्यादा मायने रखती है, सब कुछ मन से बनता है.
अगर अशुद्ध मन हो तो,
आप बोलते हैं या कृती करते है,
तो दुःख आपका पीछा करता है
जसे एक गाड़ी का पहिया मसौदा जानवर के पैर के पीछे चलता है.
अगर शुद्ध मन से
आप बोलते या कृती करते है,
तो खुशी आपके पीछे आयेगी
एक छाया के तरह जो कभी चली नही जाती.
अगर यदि यह बात है, तो एक को मालूम होना चाहिए मन क्या है और यह कैसे काम करता है. अपने अभ्यास द्वारा इस तथ्य की जांच शुरू कर दी है. जैसे ही आप आगे बढेंने, तो आपको स्पष्ट हो जायेगा की मनके चार प्रमुख खंड या aggregates( समुच्चय) हैं.
पहले खंड को कहा जाता है viññāṇa(विज्ञान), जिसको चेतना कहा जा सकता है. संवेदनशील इंद्रियों निर्जीव है जब तक चेतना उन के साथ संपर्क में नही आती है. उदाहरण के लिए, अगर एक देखने में तल्लीन है, और ध्वनि आ जाए तो उनको यह नहीं सुनाइ देगा, क्योंकि सभी चेतना आंखों के साथ समाई है.मन का यह हिस्सा कोइ भेदभाव के बिना पहचान करने के काम मे सिर्फ जानने के लिये है. ध्वनि कान के साथ संपर्क में आता है, और viññāṇa(विज्ञान) केवल एक ध्वनि आ गया है इसकी जान-पहचान करता है.
तब मन का अगला हिस्सा काम करना शुरू करता है: saññā(संज्ञा) बोध है. एक ध्वनि आया है, किसी के पुर्वानुभव और यादों से, यह पहचानता है: एक ध्वनि ... शब्द ... प्रशंसा के शब्दों ... अच्छा; वरना, एक ध्वनि ... शब्द ... गाली के शब्द ... बुरा. कोईएक अपने पुराने अनुभव के अनुसार, अच्छा या बुरा का मूल्यांकन करता है.
तुरंत मन का तीसरा भाग काम करना शुरू करता हैःvedanā(वेदना), संवेदना. जैसे ही एक ध्वनि आता है, वहाँ शरीर पर एक संवेदना होती है, लेकिन अनुभुती यह पहचानती है और मूल्यांकन करती है, मूल्यांकन के अनुसार अनुभूति सुखद या दुःखद लगती है. उदाहरण के लिए: एक ध्वनि आया है ... शब्द ... प्रशंसा के शब्दों ... अच्छा - और कोईएक पूरे शरीर में सुखद अनुभूति महसूस करता है. वरना; एक ध्वनि आ गया है ... शब्द ... गालीके शब्द ... बुरा - और कोईएक को पूरे शरीर में एक अप्रिय संवेदना की अनुभूती होती है. संवेदनाए शरीर पर उत्पन्न होती है, और मन महसूस कर रहा हैं; इस कार्य को vedanā(वेदना) संवेदना कहा जाता है.
तब मन का चौथा भाग काम शुरू करता है: sahkara(संस्कार) प्रतिक्रिया.एक ध्वनि आ गया है ... शब्द ... प्रशंसा के शब्दों ... अच्छा ... सुखद अनुभूति - और एक इसे पसंद करना शुरू करता है: "यह प्रशंसा असाधारण है मुझे और चाहिये!" वरना: एक ध्वनि आ गया है ... शब्द ... गाली का शब्द ... बुरा ... अप्रिय संवेदनाए - और एकको इससे नापसंती शुरू होती है: "मैं यह गाली सहन नहीं कर सकता, इसे बंद करो!" इंद्रियों के प्रत्येक दरवाजे में, एक ही प्रकारकी प्रक्रिया होती है; आंख, कान, नाक, जीभ, शरीर. इसी प्रकार, जब एक विचार या कल्पना मन के संपर्क में आती है, उसी प्रकारसे एक संवेदना शरीर पर उत्पन्न होती है, सुखद या दुखद, और कोईएक पसंदी या नापसंदी की प्रतिक्रिया शुरू करता है. यह क्षणिक पसंदी महान आसक्ति में बदल जाती है; यह नापसंदी महान द्वेष में बदल जाती है. कोईएक अपने भीतर गांठे बांधना शुरू करता है.
saṅkhārā(संस्कार) मानसिक प्रतिक्रिया: यह है असली बीज जो फल देती है, कृती जो परिणाम देती है. हर पल कोईएक यह बीज बोता रहता है, पसंदीका या नापसंदीका, राग या द्वेष की प्रतिक्रिया करते रहता है, और ऐसा करके अपने आप को दुखी करता है.
वहाँ प्रतिक्रियाओं है जो बहुत ही कम खिंचती है, और लगभग तुरंत नाश पाती है, जो थोडी गहरी लकीर बनाती है वह कुछ समय के बाद नाश होती हैं, और जो बहुत गहरी लकीर बनाती है, वह बहुत लंबे समय के बादही निकल जाती हैं. कोईएक दिन के अंत में, जब उत्पन्न किये हुए सब saṅkhārā(संस्कार) को याद करने की कोशिश करता है, तो दिनभरके संखारोसे इक्का दुक्का ही याद होगा जिसने बहुत गहरी लकीर छोडी है. उसी तरह, एक महीना या एक साल के अंत में, कोईएक को एक या दो saṅkhārā(संस्कार) याद होगा जिसने उस समय मे बहुत गहरी लकीर खिंची है. और यह पसंद है या नहीं, जो कुछ भी saṅkhārā(संस्कार) मजबूत लकीर बनाता है वह जीवन के अंत में,मन में उभर आना स्वाभाविक है; और अगला जीवन भी मनके उसी मधूर या कड़वाहट के गुणोंसे भरे हुए प्रकृति के साथ शुरू हो जाएगा. हम स्वयं अपने कृतीसे भविष्य बनाते है.
विपश्यना मरने की कला सिखाता है: कैसे शांति से सुसंगतीसे मर जाए. कोईएक जीने की कला सीखकर मरने की कला सीखता है: कैसे वर्तमान क्षण के मास्टर बने, कैसे इस क्षणमे saṅkhārā(संस्कार) उत्पन्न न हो, कैसे यहाँ और अब सुखी जीवन जीये. यदि वर्तमान अच्छा हो, तो जो केवल वर्तमान का एक निर्माण है ऐसे भविष्य की चिंता न करे, और इसलिए भविष्य अच्छा होना स्वाभाविक है.
यहाँ तकनीक के दो पहलू हैं:
पहले मन के चेतन और अचेतन के बीच की दिवार टूटती है.आमतौर पर चेतन मन को अचेतन मन क्या अनुभव कर रहा है इसकी कुछ भी जानकारी नहीं होती है. इस अज्ञान के वजहसे छिपे हुए, अचेतन स्तर पर प्रतिक्रियाए होती रहती है; सचेत स्तर पर कुछ समयसे पहुँचने तक, वे इतनी तीव्र होती है की वे(प्रतिक्रिया) आसानी से मन पर काबू कर लेती हैं. इस तकनीक के द्वारा, मन का पूरा पुंज सचेत, सजग हो जाता है; अज्ञान दूर किया जाता है.
समता यह तकनीक का दूसरा पहलू है. किसीएक को हर संवेदना के अनुभव कि जानकारी होती रहती है, लेकिन प्रतिक्रिया नही करता,राग या द्वेष की नई गांठे नही बांधता, अपने लिए दुख पैदा नहीं करता.
शुरू करने के लिये,जब आप ध्यान के लिए बैठते हैं, बहुत समयतक आप संवेदना के प्रती प्रतिक्रिया करेंगे, लेकिन कुछ क्षण तीव्र वेदना के बावजूद आप समता मे रहेंगे. ऐसे क्षण मन की आदत पैटर्न बदलने में बहुत शक्तिशाली हैं. धीरे-धीरे आप, ऐसे स्थिती तक पहुच जाएंगे जिसमें आप किसी भी संवेदना पर aniccā(अनिक्क/अनिच्च),समाप्त होनेवाली है ऐसे समझकर मुस्कराएंगे,
यह स्थिति को प्राप्त करने के लिए, आप को स्वयं ही काम करना है, बाकी कोई भी आप के लिए यह काम नही कर सकता. यह अच्छा है कि आपने रास्ते पर पहला कदम उठाया है; अब अपने स्वयं के मुक्ति की दिशा में कदम कदम चलते रहिये .
आप सब को असली खुशी का आनंद मिले.
सभी प्राणी सुखी हो!