अभ्यास के लिये मार्गदर्शक तत्व

एक विपश्यना शिविर आपके जीवन में परिवर्तन लाएगा तो ही केवल सही मायने में महत्वपूर्ण है, और दैनिक रुपसे इस विद्याका अभ्यास करते रहेंगे तब ही एक परिवर्तन आयेगा. आपने क्या सीखा है उसकी निम्नलिखित रूपरेखा ध्यान की निरंतर सफलता के लिए शुभकामनाओं के साथ दी गयी है.

शील

दैनिक जीवन में इन पांच शीलो(उपदेशों) का पालन करके अभ्यास किया जाता है:

  • किसी प्राणी की हत्या से बचिये(हिंसा न करे),
  • चोरी करने से दूर रहिये,
  • लैंगीक दुराचार न करे,
  • झूठ भाषण से बचिये,
  • सभी मादक द्रव्यों से बचना.


साधना(ध्यान)

अभ्यास बनाए रखने के लिये न्यूनतम आवश्यकताए:

  • सुबह में एक घंटे और शाम को एक घंटे,
  • जब बिस्तर में लेट जाते है तब गहरी निंद के पहले पांच मिनट और आप को जाग आने के बाद पांच मिनीट
  • यदि संभव हो तो, हप्ते मे एक बार विपश्यना की इस विद्या का अभ्यास करनेवाले अन्य साधकोंके साथ एक घंटा साधना करे,
  • एक दस दिवसीय शिविर या स्वयंशिविर साल में एक बार,
  • और ध्यान के लिए अन्य मुक्त समय.
ध्यान का दैनिक अभ्यास कैसे करे:

आनापान

अगर मन सुस्त या अशांत है तब, संवेदना महसूस करना मुश्किल होता है या उन पर प्रतिक्रिया न करना मुश्किल होता है. आप आनापान से शुरू कर सकते हैं और उसके बाद विपश्यना पे जा सकते है अथवा, यदि आवश्यक हो तो, पूरे एक घंटे के लिए सांस की जानकारी शुरु रख सकते है. आनापान के अभ्यास के लिये, नाक के नीचे और ऊपर वाले होंठ के ऊपरी के क्षेत्र में ध्यान रखिये. प्रत्येक सांस जैसे आता है और जाता है इस के बारे में जानकारी रखिये. अगर मन बहुत सुस्त या बहुत अशांत हो तो, कुछ समय के लिये जान-बूझकर थोडा जोरसे सांस ले.अन्यथा, सांस लेना सहज स्वाभाविक होना चाहिए.

विपश्यना

शरीर के अंग अंगोमे जो भी संवेदना महसूस हो उसकी जानकारी रखते हुए सिर से पाव तक और पावसे सिर तक क्रम से निरिक्षण करे. संवेदना का जो भी अनुभव हो, चाहे, सुखद,दुखद,अप्रिय या तटस्थ, उनके नश्वरता का स्वभाव जानते हुए उसका निष्पक्ष निरीक्षण करें;याने सभी संवेदना के प्रती समता रखे. आपका निरिक्षण गतिशील रखे. कभी भी किसी भी एक जगह कुछ मिनट से अधिक नही रुकिये. अभ्यास यंत्रवत न बनने दे. जिस प्रकारकी संवेदना का अनुभव हो उसके अनुसार अलग-अलग तरीकों से काम करे. शरीर के जिन भागोमे विभिन्न स्थूल संवेदना महसूस होती हो वहॉ अलग अलग करके उन हिस्सो पर ध्यान दे.समान भाग जैसे की दोनों हाथ या दोनों पैर, इसी तरह के सूक्ष्म संवेदना होने वाले भागो को एक साथ साथ देखा जा सकता है. अगर आप को पुरे शरीर मे सूक्ष्म संवेदना का अनुभव होता हो तो एक ही समय पूरा शरीर स्वीप करे और उसके बाद फिर से अलग से भाग भाग पर काम करते रहे.

घंटे के बाद भी मानसिक या शारीरिक अशांती लुप्त होनेके लिये आराम करे. उसके बाद कुछ मिनट के लिये शरीर के सूक्ष्म संवेदना पर अपना ध्यान केन्द्रित करे, और सभी प्राणीयों के लिए विचारों और सद्भावना की भावनाओं से अपना मन और शरीर को भर दे.


साधना काल के अतिरिक्त

आप को किसी भी महत्वपूर्ण काम करने मे अपना पूरा ध्यान देना है, लेकिन समय समय पर आप सजगता और समता बनी रही है के नही इसकी जांच किजिये. जब भी कोई समस्या उत्पन्न होती है, यदि संभव हो तो, अपनी सांस या संवेदना पे कुछ सेकंद के लिये ध्यान दे.यह विभिन्न स्थितियों में संतुलित रहने के लिए आपको मदत करेगा.

दान

आपने दूसरों के साथ जो कुछ भी अच्छा प्राप्त किया है उसे बांटे. ऐसा करने से स्वयंकेंद्रित रहनेकी पुरानी आदत उन्मूलन करने में मदद होती है.साधक को एहसास होता है कि धम्म को बांटना सबसे महत्वपूर्ण बात है. पढ़ाने के लिए सक्षम नही होने के नाते, वे दूसरों को विद्या सीखने मे जो हो सके वो मदद करते है. इस शुद्ध इच्छा के साथ वे दुसरे साधकों के खर्च के लिये दान देते है.

यह दान  ही दुनिया भर में केन्द्रों और शिविरोंके लिए वित्त पोषण का एकमात्र स्रोत है.


निःस्वार्थ सेवा

अपना समय और प्रयास देना और शिविर आयोजित करनेमे या चलानेमे मदत करना या धम्म का काम करना यह बडा dāna(दान) है. बदले में कुछ भी प्राप्त किये बिना वे सभी जो मदद (आचार्य और साहाय्यक आचार्य सहित) dāna दान के रूप में उनकी सेवा देते हैं. इन सेवा से न केवल दूसरों को लाभ मिलता है, लेकिन उन लोगों को भी जो सेवा करते है उनको शिक्षा को गहराईसे समझनेके लिये, और मार्ग पर आगे बढनेके लिये अहंकार निकालने मे मदद होती है.


केवल एकही मार्ग

अन्य विद्या के साथ इस तकनीक का मिश्रण नहीं करे. अगर आप कुछ और अभ्यास कर रहे हो तो, कौनसी तकनीक आप पसंद करते हैं यह तय करने में मदद करने के लिए दो या तीन विपश्यना शिविर मे शामिल हो सकते हो. फिर जो सबसे उपयुक्त और लाभकारी लगती है वह चुन लिजिये, और अपने आपको उसके लिये समर्पित करे.


विपश्यना के बारेमे दुसरोंको बताना

आप दूसरों के लिए तकनीक का वर्णन कर सकते है, लेकिन उन्हें पढ़ाइये नहीं. अन्यथा आप मदत करनेके बजाय भ्रमित करेंगे. जो लोग शिविरमे, जहां एक प्रशिक्षित गाइड है वहॉ शामिल होकर साधना करना चाहते है उन्हे प्रोत्साहित करे.


सामान्यतः

प्रगति धीरे-धीरे होती है. गलतियाँ होनीवाली ही है उनसे सिखे. जब आपको पता चला कि आपने गलती की है, मुस्कराइये और फिर से शुरू करे!

साधना मे सुस्ति, अशांती, मन भटकना और अन्य कठिनाइयों का अनुभव करना सर्वसाधारण बात है , लेकिन अगर आप दृढ़ रहेंगे तो आप सफल हो जाएंगे.

मार्गदर्शन के लिए आचार्य या सहायक आचार्य से संपर्क करने मे आपका स्वागत करते है.

आपके साथी साधक के सहाय्यता का उपयोग करें. उनके साथ बैठनेसे आपको मजबुती मिलेगी.

जब भी समय हो तो केन्द्रों या धम्म घरों पर जाकर कुछ दिनों या घंटों के लिए बैठकर ध्यान वातावरण का उपयोग करें. एक पुराने साधक के रूप में आप केवल विपश्यना विद्या का अभ्यास कर रहे हैं यह सोचकर और शिविरमे जगह की उपलब्धता होनेपर आपका दस दिवसीय शिविर मे कुछ दिनोतक आने के लिए स्वागत करते हैं.

हर अनुभव अनित्य है ऐसे पहचानना और स्वीकार करना यह सच्चा ज्ञान है.इस अंतर्दृष्टि के साथ आप उतार चढ़ाव से घबराएंगे नहीं. और जब आप एक आंतरिक संतुलन बनाए रखने में सक्षम हो जाएंगे, तो आप ऐसा बर्ताव करेंगे कि जो आपके और दुसरोंके लिये सुख उत्पन्न करेगा. समताभरे चित्तसे हर क्षण खुश रहनेसे, सभी दुखोसे मुक्ति के अंतिम लक्ष्य तक जानेमे आप निश्चित प्रगती करेंगे.


बार-बार इस्तेमाल होनेवाली संज्ञाए

नीचे दी हुई शब्दावली अधिकांश पाली भाषा से ली गयी है और रोमन पाली संकेतन में यहाँ सूचीबद्ध हैं. दुर्भाग्य से, अक्षरों के उचित विशेषक चिन्ह शामिल करने के लिए इस माध्यम की सीमाए यह असंभव करती है. सही उच्चारण की सुविधा के लिए किसिको भी जिसमे इन चिन्हे मौजूद है ऐसे दूसरे मुद्रित स्रोत से परामर्श करना चाहिए.

तीन प्रशिक्षण:

  • शील-नैतिकता
  • समाधि-एकाग्रता, मन को वश करना
  • पन्ना-ज्ञान, अंतर्दृष्टि जो मन को शुद्ध करती है

तीन रत्न:

  • बुद्ध -ऐसी व्यक्ति जो पूरी तरह से प्रबुध्द है
  • धम्म -प्रकृति के कानून; एक प्रबुद्ध व्यक्ति की शिक्षा; मुक्ति का मार्ग
  • संघ -कोइ भी जिसने धम्म का आचरण किया है और शुद्ध चित्त, संत व्यक्ति बन गयी है

सभी मानसिक मलिनता के तीन जड:

  • राग / लोभ-आसक्ति
  • दोष-द्वेष
  • मोह-अज्ञान

आर्य अष्टांगिक मार्ग:

  • सम्मा-वाचा-सम्यक वाणी
  • सम्मा-कम्मन्ता-सम्यक कर्म
  • सम्मा-आजिवा-सम्यक आजिविका
  • सम्मा-वाय्यामा-सम्यक प्रयास/प्रयत्न
  • सम्मा-सती-सम्यक सजगता
  • सम्मा-समाधि-सम्यक एकाग्रता
  • सम्मा-संकप्पा-सम्यक संकल्प
  • सम्मा-दिठ्ठी-सम्यक दृष्टी
निब्बाण -अवर्णनीय, परम सच्चाई जो मन और शरीर के परे है (संस्कृत मे निर्वाण)

 

ज्ञान के तीन प्रकार:

  • सुत---मय पन्ना - दूसरों को सुनने से प्राप्त हुआ ज्ञान
  • चिंता--मय पन्ना -बौद्धिक विश्लेषणात्मक  समझदारी 
  • भावना --मय पन्ना - प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर मिला हुआ ज्ञान

प्रपंच के तीन लक्षण:

  • अनिच्चा -अनिच्च(अनित्य)
  • अनत्ता -अहंभावरहित
  • दुःख -क्लेश/पीडा

कम्मा कार्य; विशेषतः ऐसा कार्य जिसका असर भविष्य मे उस व्यक्तिपर पड़ेगा (संस्कृत कर्म)

चार आर्य सत्य:

  • दुख सत्य
  • दुख का मूल (आसक्ति)
  • दुःखका निवारण
  • दुःख निवारण का मार्ग

पांच समुच्चय जिनसे मनुष्यजाती बनी  है:

  • रूप - परमाणु के कणों से बना शरीर (कलापा)
  • विज्ञान - चेतना, बोध
  • सन्ना(संज्ञा) -अनुभूती, पहचानना
  • वेदना -संवेदना
  • संखारा -प्रतिक्रिया; मानसिक कंडीशनिंग

चार भौतिक तत्व: 

  • पृथ्वी -भूमि (घनता, वजन)
  • आप -जल (प्रवाही, संसक्ति)
  • वायू हवा (वायुरुप, गति)
  • तेजो अग्नि (तापमान)

     पांच बाधा या दुश्मन:

    • कामछंद -राग(आसक्ति)
    • व्यापाद -द्वेष
    • थिन--मिद्ध -शारीरिक सुस्ती और मानसिक तंद्री
    • उध्धच्च-कुक्कुच्च -अशांति और चिंता
    • विचिकित्सा -शंका, अनिश्चितता

     पांच बल या मित्र:

    • श्रध्दा -विश्वास
    • वीर्य -प्रयत्न/प्रयास
    • सती -सजगता
    • समाधि -एकाग्रता
    • पन्ना(प्रज्ञा) - ज्ञान 

    विषय उत्पन्न होने के चार कारणः

    • आहार
    • पर्यावरण / वातावरण
    • वर्तमान मानसिक प्रतिक्रिया
    • पिछले मानसिक प्रतिक्रिया

    शुद्ध मन के चार गुण:

    • मेत्ता(मैत्री) -निःस्वार्थ प्रेम
    • करुणा - दया
    • मुदिता -सहानुभूतीपूर्ण खुशी
    • उपेक्षा -समता

    सतिपठ्ठान सजगता की स्थापना; विपश्यना के लिए प्रतिशब्द

    चार सतिपठ्ठान हैं:

    • कायानुपश्यना -शरीर का अवलोकन
    • वेदनानुपश्यना - शारीरिक संवेदना का निरीक्षण
    • चित्तानुपश्यना -मन का निरीक्षण
    • धम्मानुपश्यना -चित्तवृत्ती का निरीक्षण

    दस पारमी या मानसिक पूर्णता:

    • नेक्खमा -निष्क्रमण
    • शील -नैतिकता(सदाचार)
    • वीर्य -प्रयत्न/प्रयास
    • खन्ती -सहनशीलता
    • सच्च -सत्यवाद(प्रामाणिक)
    • अधिठ्ठान - दृढ़ संकल्प
    • पन्ना/प्रज्ञा -ज्ञान
    • उपेक्खा(उपेक्षा) -समता
    • मेत्ता(मैत्री) -निःस्वार्थ प्रेम
    • दाना -औदार्य; दान

    भवतु सब्ब मंगलं  सभी प्राणि सुखी हो!

    साधु, साधु, साधु - अच्छा कहा, अच्छा किया; हम सहमत हैं, इस इच्छा मे हम भागीदार है


    गोएन्काजी से एक संदेश

    धम्म पथ के  प्रिय यात्रियों
    मंगल हो!
    धम्म की मशाल प्रज्वलित रखे! उसकी प्रकाशमें  आपका  दैनिक जीवन उज्वल हो. हमेशा याद रखे, धम्म एक पलायन नहीं है. यह जीने की एक कला है: शांति और सद्भाव से अपने आपमें और सभी अन्य लोगों के साथ जीनेकी कला.  इसलिए, धम्म जीवन जीने का प्रयास करें.
    हर सुबह और शाम को अपने दैनिक अभ्यास कों मत छोडिये.
    जब भी संभव हो, अन्य विपश्यना साधक के साथ साप्ताहिक सामुहिक साधना में भाग लिजिये.
    वर्ष मे एक बार एक दस दिवसीय शिविर करे. यह आप को मजबूत रखने के लिए आवश्यक है.
    आत्मविश्वास के साथ, आप आसपास के कांटोसे बहादुरीसे और मुस्कराते हुए सामना करे.
    नफरत और द्वेष छोड दिजिये, इससे शत्रूता खत्म होगी.
    लोग, विशेषतः जिनको धम्म समझाही नही और दुखी जीवन जीते है, उनके प्रती प्रेम और करुणा उत्पन्न किजिये.
    अपने  धम्म व्यवहारसे  उन्हें शांति और सौहार्द का मार्ग दिखा दे. अपने चेहरे पर की धम्म की चमक  असली खुशी के इस मार्ग पर अधिक से अधिक दुखी लोगों को आकर्षित करे.
    सभी प्राणियों सुखी, शांतिपूर्ण, मुक्त हो.
    मेरे सारे मैत्री के साथ,
    एस एन गोएन्का