विपश्यना
सत्यनारायण गोयन्काजी द्वारा सिखायी गयी
साधना
सयाजी ऊ बा खिन की परंपरा मैं
आचार्य गोयन्काजी का धम्मसेवा के महत्त्व पर संदेश
धम्मसेवा करते समय आप यह सीखते हो कि धर्म का दैनंदिन जीवन में कैसे प्रयोग किया जाय। आखिरकार जीवन में जो जिम्मेदारिया है उससे भागना धर्म नहीं है। शिविर के समय या किसी विपश्यना केंद्र की छोटी दुनिया में साधकों से धम्मानुसार व्यवहार कर परिस्थितियों को धम्मानुसार निपटाकर आप अपने को तैयार करते हो ताकि बाहरी दुनिया में भी विभिन्न परिस्थितियों में धम्मानुसार काम कर सको। इसके बावजूद कि अनचाही घटनाएं घटती ही रहती हैं, आप अपने मस्तिष्क के संतुलन को बनाये रखने के लिये अभ्यास करते ही रहते हो और इसके प्रतिक्रिया स्वरूप मैत्री और करुणा की भावना विकसित करते हो। यही शिक्षा है जिससे आप प्रवीणता हासिल करते हो। आप ठीक वैसे ही साधक हो जैसे शिविर में बैठे साधक।
विनम्रतापूर्वक सेवा करते हुए सिखते ही रहो। यह सोचते रहो कि मैं यहां प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा हूं, इस बात का प्रशिक्षण कि बदले में बिना किसी वस्तु की आशा किये मुझे निरंतर सेवा का अभ्यास करना है। मैं सेवा कर रहा हूं ताकि दूसरे लोग धर्म से लाभान्वित हो सकें। मुझे एक आदर्श प्रस्तुत कर उनकी सहायता करनी चाहिए और ऐसा कर अपनी भी सहायता करनी चाहिए।
आप सभी धम्मसेवक धम्म सेवा भाव में पुष्ट हों। दूसरों के लिए सद्भाव मैत्री और करुणा के भाव विकसित करना सीखो। आप सभी धम्म में प्रगति करो और सच्ची शांति, सच्ची मैत्री और सच्चे सुख का अनुभव करो।
आचार्य सत्यनारायण गोयन्का